अंतिम इच्छा रामानंद सैनी

मुझे इस बात का जीवन भर पछतावा रहेगा कि मैंने अपने पिताजी की अंतिम इच्छा पूरी नहीं की l बात 30 अगस्त 2013 की है l जिस दिन पिताजी के प्राण निकलने वाले थे l उस दिन लखनऊ के बलरामपुर हॉस्पिटल के इमरजेंसी कक्ष में मैंने पिता जी के पास जा करके उनसे पूछा बाबू, कैसा महसूस हो रहा है, कुछ कहना है, कुछ खाना पीना है l मेरे इस प्रश्न पर उन्होंने कहा रामानंद बड़ी उलझन हो रही है,मेरे पेट में दर्द हो रहा है l मुझे तुम ठंडी ठंडी पेप्सी पिला दो l जिस से कुछ राहत मिल जाए l मैंने उन की आज्ञा के अनुसार पेप्सी न ला करके डॉक्टर से पूछने चला गया कि पिताजी की इच्छा है, ठंडी ठंडी पेप्सी पिएंगे l

क्या मैं उन्हें पेप्सी दे सकता हूं? डॉक्टर ने मुझसे झल्लाते हुए कहा कि उनके प्राण निकलने वाले हैं और न निकले तो तुम पेप्सी पिला करके निकाल दो l अरे मूर्ख, उनकी तबीयत बहुत खराब है l अगर तुम उन्हें पेप्सी पिला दोगे, अगर कुछ हो गया तो फिर तुम यहीं पर धरना प्रदर्शन करना शुरू कर दोगे मेरे खिलाफ और कहोगे कि डॉक्टर ने मेरे बाप को मार डाला l मैं उन्हें बचाने का प्रयास कर रहा हूं और तुम उनके बेटे हो करके उनको मारने का प्रयास कर रहे हो, बेवकूफ हो क्या? उनके शब्दों को सुनकर के मैं ठिठक गया और पेप्सी लेने नहीं गया l दो मिनट बाद मैं फिर पिताजी के पास गया, उनकी सांसें उखड़ रही थी l य़ह देखकर मैं फिर डॉक्टर के पास दौड़ करके गया और बोला, डॉक्टर साहब पिताजी को बचा लीजिएगा l डॉक्टर साहब दौड़ कर के पिताजी के पास आए, उनके सीने को दबाने लगे l नर्स को बुला करके तुरंत 2 इंजेक्शन लगाए l एक पर्ची लिखी और मुझसे कहा कि जाओ तुरंत यह जांच करा के आओ l मुझे लग रहा है कि इनके अटैक पड़ा है l लेकिन मैं वहां से हट भी नहीं पाया था कि पिताजी की आंखें खुली की खुली रह गई l पुतलियाँ अंदर चली गई और मैं अपनी आंखों के सामने उन्हें परलोक जाते हुए देखते रह गया l मैं नहीं समझ पाया कि गलती मेरी थी या डॉक्टर की l बस मुझे इतना पता है कि मैं पिताजी की अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर पाया l जब उन्हें मरना ही था तो डॉक्टर को मुझे मना नहीं करना चाहिए था या फिर मुझे डॉक्टर से पेप्सी के बारे में पूछना ही नहीं चाहिए था l पिता जी की आज्ञा थी इसलिये मुझे जाना चाहिए था l लेकिन मैं यह सोचकर नहीं गया अगर पेप्सी पिला दी और वह न बचे तो जीवन भर के लिए पछतावा हो जाएगा l अगर मैंने पेप्सी न पिलाई होती तो शायद वह बच जाते l इसी उधेड़बुन में मैं उन्हें पेप्सी नहीं दे पाया, उनकी अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर पाया l उनके मरने के बाद अंतिम संस्कार के समय मैंने शव के ऊपर रखी हुई लकड़ियों पर 2 लीटर की पेप्सी डलवाई l तेरहवीं संस्कार के बाद जब खाना निकाला गया तो उस खाने के साथ पानी की जगह पर पेप्सी रखवाई और हर साल उनकी याद में उन की पुण्यतिथि पर पेप्सी पिलाता हूं l लेकिन यह सब तो ढकोसला है, मन को शांति देने का तरीका है l असलियत तो यही है कि मैं उन्हें पेप्सी नहीं पिला पाया, उस अपराध से मैं अपने को कभी क्षमा नहीं कर सकता l भले ही मैं जीवन में कुछ भी कर लूं, कितना भी कर लूं l यह गम तो हमेशा रहेगा कि मैं उनकी अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर पाया l

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