एआईसीसी गांधी परिवार के आउटहाउस में सिमट कर रह गई
राहुल एंड टीम ने डुबोई कांग्रेस की नैया, कांग्रेसियों की दुर्गति के ज़िम्मेदार एआईसीसी पर हुए काबिज़ !
(शाहनवाज़ हसन)
देश की आजादी के बाद अगले 50 वर्षों तक देश की राजनितिक पटल पर कांग्रेस पार्टी का शासन रहा। वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के हाथ से न केवल केन्द्र सरकार की सत्ता हाथ से जाती रही बल्कि दो चार राज्यों तक ही कांग्रेस सीमित होकर रह गई।
भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के साथ भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व ने जो सलूक किया था उसी राह पर राहुल गांधी की कांग्रेस भी चल पड़ी। कांग्रेस को युवा पीढ़ी से जोड़ने के नाम पर पार्टी से वरिष्ठ कांग्रेसियों को हाशिए पर धकेल दिया गया। कभी राजीव गांधी के करीब रहने वाले पार्टी और जनता में प्रभावशाली नेतृत्व की छमता रखने वाले कांग्रेसियों को हाशिए पर धकेल उनके स्थान पर उन व्यक्तियों को पार्टी में महतवपूर्ण पदों पर बैठाया गया जो केवल राहुल प्रियंका के दरबारी बने रहे जिनका जनमानस पर कोई प्रभाव नहीं था। कभी एआईसीसी में महत्तवपूर्ण पद पर रहने वाले एक वरिष्ठ कांगरेसी कहते हैं कि वे और उन जैसे लाखों कांग्रेसी कार्यकर्त्ता जिनके जीन में कांग्रेस है कांग्रेस की नैया डूबते बड़ी बेबसी से देख रहे थे पर उनकी सोनिया-राहुल दरबार में एक नहीं सुनी जा रही थी वहां ऐसे लोग काबिज़ हो गए थे जिनका अपना स्वयं का कोई जनाधार नहीं था।एआईसीसी गांधी परिवार के आउटहाउस में सिमट कर रह गई थी। एआईसीसी में अन्य दलों से शमिल होने वाले नेताओं और पत्रकारिता से राजनिति में कदम रखने वाले एक नेता ने पार्टी को पूरी तरह से हाईजेक कर लिए था।
कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के बाद राहुल गांधी ने सीनियर नेताओं को साथ लेकर चलने की बात कही थी। परंतु संगठन की महत्तवपूर्ण नियुक्तियों में केवल युवाओं को तरजीह देकर कांग्रेस के अंदर सीनियर नेताओं की पूरी तरह से अन्देखी की गई, उनके लिए 10 जनपद के दरवाजे लगभग बंद कर दिए गए, जिससे कांग्रेस के अंदर सीनियर नेताओं में असंतोष बढ़ता चला गया।
बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र समेत अलग अलग राज्यों के युवा नेताओं को राहुल एंड कंपनी ने दिल्ली में जिम्मेदारी देकर न केवल राष्ट्रीय पहचान दी बल्कि उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट से भी नवाजा गया। राहुल गांधी एंड कंपनी का यह प्रयोग पूरी तरह से विफल रहा ऐसे सभी नेताओं को जनता ने पूरी तरह से नकार दिया यहां तक कि कई राष्ट्रीय प्रवक्ता अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए।
वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जिन्हें इग्नोर कर नई कांग्रेस बनाने की पहल राहुल एंड कंपनी कर रही है वे पार्टी के बुजुर्ग अध्यक्ष खड़गे को केवल रबर स्टांप की तरह देखना चाहते हैं इसका उदाहरण तब देखने को मिला जब हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री का चयन किया गया, हिमाचल के मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने के बाद कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का नाम तक लेना गवारा नहीं किया। जिन्हाें ने कांग्रेस की नैया डुबोई उन्हें ही राहुल एंड टीम ने महत्तवपूर्ण पदों पर सुशोभित किया। हाल ही में झारखंड कांग्रेस में जिस तरह से जिला अध्यक्षों की नियुक्ती की गई है वह यह दर्शाती है कि आने वाले समय में भाजपा का “कांग्रेस मुक्त भारत” का नारा पूरी तरह से सफल होता दिखाई दे रहा है जिला अध्यक्ष नगर अध्यक्ष पद पर आजसू एवं अन्य राजनितिक दल से आए नेताओं को परोसा गया है जबिक एनएसयूआई और युवा कांग्रेस से जुड़े रहे नेताओं को पूरी तरह इग्नोर कर दिया गया, बाद में भारी विरोध होने पर कांग्रेस प्रदेश कमेटी के नाम पर जंबो जेट कमेटी बनाकर इसे रफू करने की कोशिश की गई है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाबजूद 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी कोई करिश्मा नहीं कर सकती क्योंकि सिनियर कांग्रेसियों की अनदेखी कर कांग्रेस की सत्ता में वापसी की बात करना भी मुँगेरी लाल के हसीन सपनों की तरह होगें। राहुल एंड कंपनी सत्ता के लिए नहीं बल्कि विपक्ष की मान्यता प्राप्त करने के लिए फिलहाल तैयारी कर रहे हैं यह कहा जाएं तो गलत नहीं होगा।