जीवन में कभी घमंड मत करना-रामानंद सैनी

लखनऊ

रामानंद सैनी

यह सीख मुझे उस समय मिली जब मैं लखनऊ में एक दिन अपनी साइकिल से रूमी गेट के पास नींबू पार्क में घूमने के लिए गया था l मुझे अपने गांव से आए हुए अभी चार-पांच साल ही हुए थे l मैं समय मिलते ही साइकिल से लखनऊ में घूमा करता था l अचानक मेरी नजर एक रिक्शेवाले पर पड़ी जो पोस्टमार्टम गृह से एक लाश को लेकर के गोमती नदी की ओर जा रहा था l मेरी नजर तो उस लाश की ओर थी जो रिक्शे पर लदी हुई थी l कितना अभागा य़ह व्यक्ति है कि मरने के बाद चार कंधे भी नसीब नहीं हुए l लेकिन रिक्शे को चलाने वाले की नजर मेरे ऊपर थी l मैंने ध्यान नहीं दिया, उसने मेरे पास आते ही रिक्शा इस ख्याल से रोक दिया कि शायद मैं उसे देख रहा था l जब रिक्शा चालक ने मेरे पास आकर जय राम जी की बोला तब मैं उसे पहचान पाया कि वह कौन है l रिक्शा चालक ने मुझसे कहा कि भैया रामानंद यह बात किसी को मत बताना कि मैं क्या करता हूं l मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती है, मैं दिन भर रिक्शा चला नहीं सकता l इसलिए कभी-कभी ऐसा भी काम करना पड़ जाता है, जिसे न चाहते हुए भी करना पड़ता है l उसे देख कर के मैं बड़ा आश्चर्य में पड़ गया कि जिसने कभी मुझे गालियां दी थी, बहुत अधिक अपमानित किया था, जिसे अपनी जमीन और जाति पर इतना अधिक घमंड था कि वह हम को शूद्र समझते हुए अपमानित करता था l आज वह इस दशा में है l मैंने उससे वादा किया कि मैं अपनी जिंदगी में कभी भी किसी को भी आपके बारे में, आपकी मजबूरी के बारे में और बचपन में अपमानित होने वाले दिनों के बारे में नहीं बताऊंगा l उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव दिखे और वह फिर धीरे से आगे की ओर य़ह कहते हुए चल पड़ा कि भैया चलते हैं, पुलिस वाले पीछे-पीछे आ रहे हैं l यह लाश उन्हीं के द्वारा भेजी गई है और इसके बदले में मुझे ₹200 भी दिया जाएगा l मैं उस व्यक्ति की मजबूरी को समझ सकता था, उसके जाने के बाद मैं घंटों सोचता रहा कि जिंदगी क्या है l एक दिन जाना तो सभी को है, बस जाने का तरीका अलग अलग हो सकता है l कभी भी व्यक्ति को अपने ऊपर घमंड नहीं करना चाहिए l कब, किसकी, कहां पर मौत हो जाए किसी को पता नहीं l अंतिम क्रिया कैसी होगी यह भी किसी को नहीं पता l इसलिए अपनी जिंदगी में किसी का दिल मत दुखाओ, उच्च जाति में पैदा होने का मतलब यह नहीं की शूद्रों का अपमान करो l वह भी भगवान का दिया हुआ एक अमूल्य उपहार है l सभी इंसान एक तरीके से पैदा होते हैं लेकिन मरने का तरीका अलग अलग हो सकता है l समय बदलता है तो बड़े से बड़ा इंसान चाहें वह किसी जाति और धर्म का हो अपनी औकात में आ जाता है l इसलिए कोशिश यही करनी चाहिए की जाति, जमीन और जोरू का घमंड न करके सिर्फ इंसानियत का पैगाम लेकर जीवन जीना चाहिए l वरना दुर्दिन तो किसी के भी आ सकते हैं मैं किस खेत की मूली हूं l

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