नदी को पैरा दिया -रामानंद सैनी

जी हां, यह एक ऐसा वाक्य है जिसने मुझे गांव वालों की एकता पर सोचने के लिए विवश कर दिया l वर्तमान में उत्तर प्रदेश का लगभग पूरा का पूरा किसान जानवरों की आवारागर्दी से परेशान है l हमारे प्रदेश का किसान दिन भर खेती करता है और रात को अपनी फसल को बचाने के लिए पूरी रात खेत के चारों ओर घूमता है, पशुओं से रखवाली करता है l वह मचान पर सोने के लिए पहुंचता ही है कि पशु आ जाते हैं l फिर उतर कर के उन्हें भगाता है l वह रात को सो नहीं पाता l इसलिए सुबह आ करके अपने घर में सोता है l ऐसा दृश्य मैंने प्रदेश के कई जिलों में देखा और अपने गांव में देखा l जब कोई किसान सरकार के नुमाइंदे से पूछता है, जानवरों पर प्रतिबंध कब लगेगा l तो वह किसान को बताते हैं पशुओं पर कोई प्रतिबंध नहीं लगेगा, उनके लिए गांव गांव गौशालाएं खोली जा रही है l आपको खेत की फसल चराने के बदले में प्रति व्यक्ति 5 किलो अनाज सरकार द्वारा दिया जा रहा है l इसलिए आपको सरकारी योजना का लाभ लेते हुए सरकारी कार्य का विरोध करने का कोई अधिकार नहीं है l शायद इसी अनाज के बदले हमारा किसान सरकार को वोट भी देता है l लेकिन कल मैंने एक ऐसे गांव को देखा जहां पर एक भी आवारा जानवर नहीं दिखा l जब मैं अपने आश्रम के लिए जमीन ढूंढने उन्नाव में सई नदी के किनारे स्थित शोहो और रामपुर गांव में गया तो वहां पर मुझे किसी भी खेत में कोई बाड़ या मचान देखने को नहीं मिला l मैंने एक किसान से पूछा कि आपकी फसलें सुरक्षित हैं, कोई मचान नहीं बना है, कहीं पर तारों की बाड़ नहीं दिख रही है, इसका क्या कारण है l किसान ने बड़े ही गंभीर भाव में मुझे उत्तर दिया, साहेब हम गांव के लोग जितने भी सांड और गाय व खुला जानवर होते हैं उन्हें नदी के पार तैरा देते हैं l वह सब जानवर लखनऊ चले जाते हैं और फिर वापस नदी के पार हमारे गांव नहीं आते l जिस किसी का जानवर उसके घर पर बंधा हुआ है सिर्फ वही जानवर आपको दिखेगा l अगर उसका भी जानवर किसी के खेत में चरते हुए मिल जाएगा तो उसे भी नदी को पैरा देंगे l नदी को पैरा देंगे शब्द को मैंने विस्तार से सुना, समझा l यह गांव वालों की एकता और समझदारी थी कि अगर एक भी जानवर दिख जाता है तो उसे नदी में जबरदस्ती घुसा कर पार करा देते हैं l इसलिए उनके गांव में फसलें सुरक्षित हैं, किसान आराम से घर में सो रहा है, मेढ़ पर चलने में कोई दिक्कत नहीं है l क्योंकि इसमें बल्लियां और तार नहीं लगे हैं l लेकिन ऐसे गांव बहुत कम मिलेंगे जो नदी के किनारे हों और गांव के लोगों में एकता हो l पूरे प्रदेश के गांव वाले और किसान छुट्टा जानवरों से परेशान हैं l मैंने किसान से पूछा, इसका कोई हल नहीं हो सकता l तो उसने कहा बाबूजी इसका हल तो नेता ही बता सकते हैं, सरकार बता सकती है l हम किसान तो अपनी सुरक्षा स्वयं करते हैं और खेत में अन्न पैदा करके उन लोगों को खिलाने का काम करते हैं l जो लोग हमारी फसलों को नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं l मैंने सोचा मुद्दा तो बहुत गंभीर है लेकिन जानवरों द्वारा किसानो को पहुंचाई जा रही क्षति को सरकार के नुमाइंदों तक पहुंचाए तो कौन पहुंचाए l नेताओं ने खेती करना छोड़ दिया है इसलिए उन्हें अब किसानों का दर्द समझ में नहीं आता है l अब यह एक बहुत गंभीर विषय बन चुका है l देखिए क्या होता है, बहुत से किसानों ने तो दुखी होकर के खेती करना छोड़ दिया है और शहर की ओर पलायन कर गए हैं l इसका हल क्या होगा मैं अपने पाठकों पर छोड़ता हूं और उनसे निवेदन करता हूं कि कमेंट में जरूर लिखें l छुट्टा जानवरों से किसानों को कैसे बचाया जाए?

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