पहचानिये:कौन अपना- कौन पराया

पहचानिये:कौन अपना- कौन पराया

अरुणिमा मिश्रा, संस्थापिका सचिव, आश्रयनिष्ठा वेलफेयर सोसायटी, बिलासपुर छत्तीसगढ़ यदि कोई आपसे यह प्रश्न करे कि दुनिया में कौन अपना, कौन पराया तो आप शायद यही उत्तर देंगे कि जो अपने सगे-संबंधी हैं, रिश्तेदार हैं, वे अपने हैं, अन्य सभी पराये। लेकिन प्रश्न की गहराई में प्रवेश करने पर आप पाएंगे कि यह उत्तर केवल भावनात्मक है। यदि ऐसा होता तो रामबाबू आज वृद्धाश्रम में क्यों शरण लेते? आपको रामबाबू के विषय में बता दें। दो कमाऊ पूतों के पिता हैं। लड़कों को अच्छी शिक्षा दिलाई। आज अच्छी नौकरी में हैं। सेवानिवृत्ति के बाद उनके लिए मकान बनवा दिया, उनकी शादियां कर दीं। शादियों के बाद ही उन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। लड़कों के नजरिए में बदलाव आया। हालात यहां तक बिगड़े कि रामबाबू को घर त्यागकर वृद्धाश्रम में आश्रय लेना पड़ा। क्या रामबाबू उन लड़कों को अपना कह सकते हैं, जिन्होंने अपने वृद्ध पिता को घर से निकलने पर बाध्य किया?
श्याम बाबू ने अपनी लड़की की शादी में अपने साधन संपन्न भाइयों से जब आर्थिक मदद चाही तो सबने मुंह फेर लिया। उन्हें अपनी रकम डूबने का अंदेशा था। ऐसे आड़े वक्त पर उनके एक मित्र ने उनकी आर्थिक मदद की। श्याम बाबू आज भी उनके कर्जदार हैं। उनकी ये हैसियत ही नहीं कि कर्ज चुका सकें। उनके मित्र भी इस तथ्य से अवगत हैं। श्याम बाबू उनसे मिलते हैं तो शर्मिंदगी महसूस करते हैं, लेकिन उनके मित्र ने आज तक रकम के लिए तगादा नहीं किया। मित्र की लड़की याने अपनी लड़की। इसी भावना से उन्होंने मदद की। अब कौन अपना हुआ, कौन पराया? क्या वे भाई जिन्होंने वक्त पर भाई की मदद नहीं की या वे मित्र जो आड़े समय पर काम आए। दहेज के लिए बहू भी तो अपने सास, ससुर, ननद द्वारा ही जलाई जा रही है। क्या ये उसकेअपने हो सकते हैं?
कुछ दिन पूर्व एक समाचार पत्र में कुष्ठ रोगियों के बारे में पढ़ा। सुनीता नाम की कुष्ठ रोगी को उसके पति ने घर से निकाल दिया। वह मायके आई तो पिता ने भी उसे रखने से मना कर दिया। आज सुनीता अपनी बच्ची के साथ कुष्ठ आश्रम में है। सुनीता की बच्ची को भी यह रोग लगने की आशंका है। अठारह साल के समारू को भी कुष्ठ रोग होने का जब पता चला तो उसके भाइयों ने उसे घर छोड़ कर जाने को कहा। मां ने भी मुंह फेर लिया। अपने हिस्से की जमीन मांगने पर भाइयों ने मारने को कुल्हाड़ी उठा ली। कहा, कुष्ठ पापी को होता है। पापी को हिस्सा देने से देवी नाराज हो जाएगी। आज समारू भीख मांगकर अपनी गुजर कर रहा है।
ऐसे कुछ उदाहरण देने का तात्पर्य यही है कि केवल सगा-संबंधी होने से कोई अपना नहीं हो जाता, न ही सगा-संबंधी न होने से कोई पराया। लोगों का कटु अनुभव यही रहा है कि कठिन समय में उनकी मदद तथाकथित परायों ने ही की, तथाकथित अपने रिश्तेदारों, सगे संबंधियों ने नहीं। अपना होने के लिए अपनत्व एक अनिवार्य शर्त है। यदि भाई, बहन, मां-बाप होकर भी आप सगे संबंधी के दुखदर्द में उसका साथ नहीं देते तो आपको अपना कहलाने का क्या अधिकार है? क्या ऐसा अधिकार उस व्यक्ति को नहीं है जो अपने मित्र के संकट की घड़ी में उसका साथ देता है, उसकी मदद करता है। उसके दुखदर्द को अपना समझकर खुद भी दुखी होता है। अत: अपना और पराया की जो व्याख्या आजकल की जाती है, वह भ्रामक है। जो अपना भाई-बहन, मां -बाप हो, वह आवश्यक नहीं की वास्तव में अपना हो। अपना पराया की परख आपत्ति में ही होती है। ऐसे में भी जो हमारा साथ दे, वह अपना बाकी पराए। यही अपना-पराया की सार्थक परिभाषा है।

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