पृथ्वी की प्राकृतिक संपत्ति को बचाना बहुत जरुरी-डॉ नन्दकिशोर साह

हर दिन पृथ्वी दिवस है। आज से ही एक सुरक्षित

जलवायु के लिए हमें निवेश शुरु करना चाहिए। पृथ्वी हम सभी के पास एक जैसी है। विश्व पृथ्वी दिवस पहली बार 1970 में मनाया गया और उसके बाद से लगभग 192 देशों के द्वारा वैश्विक आधार पर सालाना 22 अप्रैल को मनाने की शुरुआत हुई। सम्पूर्ण ब्रह्मांड में पृथ्वी एक ऐसा ज्ञात ग्रह है जिस पर जीवन पाया जाता है। धरती पर जीवन को बचाये रखने के लिये पृथ्वी की प्राकृतिक संपत्ति को बनाये रखना बहुत जरुरी है। इस पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान कृति इंसान है। धरती पर स्वाश्वत जीवन के खतरा को कुछ छोटे उपायों को अपनाकर कम किया जा सकता है, जैसे पेड़-पौधे लगाना, वनों की कटाई को रोकना, वायु प्रदूषण को रोकने के लिये वाहनों के इस्तेमाल को कम करना, बिजली के गैर-जरुरी इस्तेमाल को घटाने के द्वारा ऊर्जा संरक्षण को बढ़ाना। यही छोटे कदम बड़े कदम बन सकते हैं अगर इसे पूरे विश्वभर के द्वारा एक साथ अनुसरण किया जाये।

ग्लोबल वार्मिंग वर्तमान समय की प्रमुख वैश्विक पर्यावरणीय समस्या है। यह एक ऐसा विषय है कि इस पर जितना सर्वेक्षण और पुनर्वालोकन करें, कम ही होगा।

आज ग्लोबल वार्मिंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिज्ञों, पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं वैज्ञानिकों की चिंता का विषय बना हुआ है। ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी ही नहीं बल्कि पूरे ब्रह्मांड की स्थिति और गति में परिवर्तन होने लगा है। जिसके खतरे के रूप में बाढ़, सूखा, भूचाल, चक्रवात या सुनामी जैसे प्राकृतिक आपदा दिखने लगी है। पृथ्वी के बढ़ते तापमान के कारण जीव-जंतुओं की आदतों में भी बदलाव आ रहा है। इसका असर पूरे जैविक चक्र पर पड़ रहा है। पक्षियों के अंडे सेने और पशुओं के गर्भ धारण करने का प्राकृतिक समय पीछे खिसकता जा रहा है। कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर है।

देश की जनसंख्या बीती एक सदी में चार गुना से अधिक बढ़ी है। इस जनसंख्या का दबाव प्राकृतिक संसाधनों पर भी बहुत बढ़ा है। नगरीय जनसंख्या में वृद्धि से हवा, पानी और जमीन पर दबाव बढ़ा है। रहने के लिए जहां जंगल साफ किए गए हैं, वहीं नदियों तथा सरोवरों के तटों पर लोगों ने आवासीय परिसर बना लिए हैं। जनसंख्या वृद्धि ने कृषि क्षेत्र पर भी दबाव बढ़ाया है। वृक्ष जल के सबसे बड़े संरक्षक हैं। बड़ी मात्रा में उसकी कटाई से जल के स्तर पर भी असर पड़ा है। सभी बड़े-छोटे शहरों के पास नदियां सर्वाधिक प्रदूषित है। भारतीय संस्कृति के अनुसार वृक्षारोपण को पवित्र धर्म मानते हुए एक पौधे को कई पुत्रों के बराबर माना है और उनके नष्ट करने को पाप कहा गया है। हमारे पूर्वज समूची प्रकृति को ही देव स्वरूप देखते थे। प्राचीन काल से मनुष्य के जीवन में पशुओं तथा वन जीव-धारियों के संरक्षण के उद्देश्य से देवी-देवताओं की सवारी के रूप में संबोधित किया गया है।

वृक्ष कितने सौभाग्यशाली हैं जो परोपकार के लिए जीते हैं। इनकी महानता है कि यह धूप-ताप, आंधी व वर्षा को सहन करके भी हमारी रक्षा करते हैं। जंगलों का विनाश राष्ट्रों के लिए तथा मानव जाति के लिए सबसे खतरनाक है। समाज का कल्याण वनस्पतियों पर निर्भर है और प्रकृति पर्यावरण के प्रदूषण का कारण और वनस्पति के विनाश के कारण राष्ट्र को बर्बाद करने वाली अनेक बीमारियां पैदा हो जाती है। तब चिकित्सीय वनस्पति की प्रकृति में अभिवृद्धि करके मानवीय रोगों को ठीक किया जा सकता है। समय रहते नहीं चेते तो अज्ञात बीमारी का महामारी के रूप में फैलना सम्भव है। अगर जनसंख्या दबाव को नियंत्रित तथा पर्यावरण को संरक्षित नही किया गया तो दीर्घकालीन समय में कुछ ऐसे रोग उत्पन्न हो सकते हैं, जिसका इलाज ही संभव न हो। ऐसे में पृथ्वी के प्राणियों के लिए अत्यंत दुखदायी होगा। अतः पृथ्वी को बचाने के लिए जो भी उपाय हमें अपनाना पड़े उसे त्वरित निर्णय लेकर करनी चाहिए।
डॉ नन्दकिशोर साह

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