मात्र ₹100 बना बेरोजगारी का कारण रामानंद सैनी

आप यकीन नहीं करेंगे, मेरी मूर्खता और हठधर्मिता के कारण मात्र ₹100 न देना जीवन भर की बेरोजगारी का कारण बन गया l यह बात सन 1993 की है l जब मैं उन्नाव के एक कॉलेज से B.Ed कर रहा था l एक साल B.Ed करने के बाद अंत में जब प्रेक्टिकल हुआ तो वहां के शिक्षकों द्वारा ₹100 सभी विद्यार्थियों से जमा कराए जा रहे थे और उसके बदले में 200 नंबरों में से 180 और 190 नंबर तक दिए जा रहे थे l उस समय मैं लखनऊ की एक कोचिंग में अध्यापन कार्य कर रहा था l मुझे अपनी योग्यता पर बड़ा गर्व था या इसे आप घमंड भी कह सकते हैं l मैंने कहा कि मैं भूगोल से परास्नातक हूं और भूगोल विषय को कई सालों से पढ़ा रहा हूं l आप टीचिंग में मुझसे भूगोल विषय का कोई भी पाठ पढ़वा लीजिए l लेकिन मैं ₹100 नहीं दूँगा l जब उसी कॉलेज में कक्षा 6 के विद्यार्थियों को भूगोल पढ़ाने का पीरियड मिला तो मैंने बहुत ही अच्छी तरीके से भारत के प्राकृतिक भाग बच्चों को पढ़ाया l बच्चों से कुछ प्रश्न पूछे तो सभी ने सही सही उत्तर दिए l मैंने अपने परीक्षक से कहा कि और कुछ अगर पढ़वाना हो या पूछना हो तो पूछ लीजिए l कक्षा में सबसे पीछे बैठी हमारी अध्यापिका (परीक्षक) जिन्हें नंबर देना था उन्होंने कहा आपने बहुत बढ़िया पढ़ाया l मैं खुश हो गया, लेकिन जब रिजल्ट निकला तो मुझे 116 नंबर प्रदान किए गए l जिस कारण से मैं दूसरी श्रेणी में पास हुआ l जबकि जिन बच्चों ने कुछ नहीं पढ़ाया, यहां तक कि कुछ लोगों ने प्रेक्टिकल भी नहीं दिया केवल कॉलेज में ₹100 दिए और उनके दो सौ में से 190 नंबर तक मिले l सन 1997 में मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के कार्य काल में जब 27000 शिक्षक की जगहें प्राथमिक विद्यालय में निकली l तो उसमें हाईस्कूल, इंटर, स्नातक के अलावा B.Ed के नंबर कुछ इस प्रकार मेरिट में जोड़े गए कि थर्ड डिवीजन के तीन नंबर, सेकंड डिवीजन के छह नंबर और फर्स्ट डिवीजन के 12 नंबर l क्योंकि मैं थ्योरी और प्रेक्टिकल दोनों में सेकंड डिविजन था इसलिए मेरे छह नंबर जोड़े गए l उस समय की न्यूनतम मेरिट 47. 20 गई थी जबकि मेरे 47. 13 नंबर थे l अब आप समझ गए होंगे कि हमे कितने नंबर से नौकरी नहीं मिली, वरना आज मैं सरकारी शिक्षक होता और यह बेरोजगारी का दंश न झेल रहा होता l मेरे कहने का मतलब यह है कि अगर हमने ₹100 जमा कर दिए होते तो मेरे नंबर 47 की जगह पर 53 पर्सेंट होते और मैं सबसे आगे होता l नौकरी की श्रेणी में तब से मुझे यह अनुभव हुआ कि जहां कहीं पैसा चल रहा हो अगर आप बुद्धिमान हो तो पैसा देने में संकोच मत करो l अगर ज्यादा होशियारी दिखाओगे तो मेरी तरह जीवन भर पछताओगे l अब तो मैं कहीं भी जाता हूं तो वहां के स्थापित सिस्टम से चलता हूँ, पैसा देने में पीछे नहीं रहता l मेरे छोटे-मोटे काम हो जाते हैं और जब मैं पैसा नहीं देता हूं तो इतना समय लगता है इतनी मेहनत करनी पड़ती है कि मैं परेशान हो जाता हूं l अब हमारे पाठक मुझे उपदेश देंगे कि आप ऐसा क्यों करते हैं l आपको पैसा नहीं देना चाहिए l हमारे देश में पैसा देना अपराध है l बात तो उनकी सही है लेकिन यह तो उसी तरीके की बात हुई की प्रेम सभी करते हैं l कोई छुपकर करता है तो कोई खुलकर करता है, कोई कहता है तो कोई अनुभव करता है l लेकिन इससे बचा कोई नहीं l

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