मोटा अनाज पोषण का भंडार -डा. नन्दकिशोर साह

मोटे अनाजों को पोषण का शक्ति केंद्र कहा जाता है। पोषक अनाजों की श्रेणी में ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, चीना, कोदो, सावा और चीलाई प्रमुख है। पौष्टिकता से भरपूर मोटा अनाज सेहत के लिए रामबाण है। रेशे और कई पौष्टिक तत्वों से भरपूर मोटा अनाज शुगर, हार्ट, लिवर, ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए रामबाण साबित हो रहा है। कोलेस्ट्रॉल स्तर सुधारते हैं। मोटा अनाज सूक्ष्म पोषक तत्व, विटामिन और खनिजों का भंडार है। छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं की पोषण में विशेष लाभप्रद है। मिलेट्स के उपयोग से दलिया, खीर, रोटी, कुकीज, पुलाव, डोसा, पास्ता आदि कई प्रकार की चीजें बनाई जा सकती हैं। इसके उत्पादन पर दुनिया के 70 देशों का समर्थन मिला है। निःसंदेह मोटे अनाज एक कारगर औषधि साबित हो सकती है। शाकाहारी खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के दौर में मोटा अनाज वैकल्पिक स्थान प्रणाली प्रदान करता है। इन खूबियों के कारण सरकार अब इसकी पैदावार पर जोर भी दे रही है। मोटे अनाज की मांग तेजी से बढ़ने के कारण कंपनियां भी इसके फायदे बताकर इनकी अच्छी कीमतों पर बिक्री कर रही है।
देश में कुछ दशक पहले तक सभी लोगों की थाली का एक प्रमुख भाग मोटे अनाज हुआ करते थे। फिर हरित क्रांति और गेहूं-चावल पर हुए व्यापक शोध के बाद इसका हर तरफ अधिकतम उपयोग होने लगा। मोटे अनाजों पर ध्यान कम हो गया। हालांकि तकनीक और अन्य सुविधाओं के दम पर पांच दशक पहले की तुलना में प्रति हेक्टेयर मोटे अनाजों की उत्पादकता बढ़ गई है। लेकिन इनका रकबा तेजी से घटा है और इनकी पैदावार कम हो गई है। भारत में सदियों से मोटे अनाज का उत्पादन होता रहा है। इसकी वजह यह है कि इसकी उत्पादन लागत कम होती है। अधिक तापमान में खेती संभव है। मोटे अनाज किसान हितैषी फसल हैं। इनके उत्पादन में पानी की कम खपत और कम कार्बन उत्सर्जन होता है। इससे उन जगहों का बढ़ावा दिया जाएगा, जहां पानी का संकट है, जिससे कि भूजल का दोहन कम हो और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल भी रुके। साथ ही कम उपजाऊ भूमि में इसका उत्पादन हो सकता है। इसके अलावा कीटनाशकों की कम जरूरत होती है और किसान रासायनिक खादों से परहेज करते हुए कंपोस्ट खाद से बीज का उत्पादन कर सकते हैं।

मोटा अनाज की अहमियत दुनिया जान चुकी है। इसी कारण वर्ष 2018 को नेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स के रूप मे मनाया गया। वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स यानी कि मोटा अनाज वर्ष घोषित किया गया है। मोटे अनाज के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए नए साल में कृषि विभाग की ओर से कई कार्यक्रम आयोजित कर अभियान भी चलाया जाएगा। इसके तहत किसानों को निःशुल्क और अनुदान पर फसलों के बीज वितरित किए जाएंगे। खरीफ सीजन में इसकी बुवाई होगी। अक्टूबर तक फसल तैयार हो जाएगी। कृषि विभाग किसानों को उपज की बिक्री में भी सहयोग करेगा।
मोटे अनाजों को पोषण का पावर हाउस कहा जाता है। मोटा अनाज सूक्ष्म पोषक तत्व, विटामिन एवं खनिजों का भंडार है। मोटे अनाज के उत्पादन में पानी की कम खपत होती है। कम कार्बन उत्सर्जन होता है। इसे शुष्क क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। इनकी खेती सस्ती होती है। मोटे अनाजों का भंडारण आसान है। लंबे समय तक संग्रहण योग बने रहते हैं। भारत के अधिकांश राज्य एक या अधिक मोटे अनाजों उगाते हैं। अप्रैल 2018 से सरकार देश भर में मोटे अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए मिशन मोड में काम कर रही है। मोटे अनाजों के उत्पादन और निर्यात में पूरी दुनिया में भारत पहले क्रम पर है। बाजरा भारत मे सबसे ज्यादा उगाया जाने वाला मिलेट्स है। इसमे चावल की अपेक्षा 8 गुना अधिक आयरन पाया जाता है। बाजरे की तासीर गरम होती है। इसे सरदी के मौसम मे खाया जाता है। यह पोटेशियम, मेग्नीशियम, आयरन, जिंक, फास्फोरस, कॉपर तथा विटामिन ए का अच्छा स्रोत है। साथ ही इनका स्वाद भी अच्छा होता है। उन्हें सप्ताह मे तीन दिन अपने भोजन मे जरूर शामिल करना चाहिए। यह घास की प्रजाति का अनाज होता है।
मिलेट्स अत्यंत पोषक, पचने मे आसान तथा उगाने मे भी आसान होते हैं। इनका सही तरीके से उपयोग कई प्रकार की बीमारी से बचाव कर सकता है। अधिक उत्पादन भूख और कुपोषण की समस्या हल करने मे बहुत सहायक हो सकता है। अब सार्वजनिक वितरण प्रणाली में गेहूं-चावल के बजाय मोटा अनाज देने की जरूरत है। इससे पोषण सुधारने के साथ-साथ मोटे अनाज के उत्पादन और खपत को भी प्रोत्साहन मिलेगा।

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