शब ए रात एक यादगार और अहम रात -इमाम गज़ाली

शब ए रात एक यादगार और अहम रात
-इमाम गज़ाली
पन्द्रह शबान की रात को फरिश्तों की ‘ईद की रात’ का नाम दिया दिया गया है। अल्लामा सुबुकी रहमतुल्लाह अलैह ने इस क़ौल की तफ़सीर में कहा है कि यह रात साल भर के गुनाहों का कफ़्फ़ारा बनती है, जुमेरात हफ़्ता के गुनाहों का कफ़्फ़ारा और लैलतुल क़दर उमर भर के गुनाहों का कफ़्फ़ारा होती है यानी इन रातों में अल्लाह तआला की इबादत करना और यादे इलाही में सारी रात जाग कर गुज़ार देना गुनाहों के कफ़्फ़ारा का सबब होता है इसीलिए इस रात को ‘कफ़्फ़ारा की रात’ भी कहा जाता है और इसे ‘ज़िन्दगी की रात’ भी कहा जाता है इस लिए कि अलमुन्ज़री ने मरफ़अन यह हदीस नकल की है कि जिसने दो ईद रातें और पन्द्रह से शाबान की रात जाग कर गुज़ार दी तो ऐसे दिन में जबकि तमाम दिल मर जायेंगे, उस इंसान का दिल नहीं मरेगा।

इसे ‘शफाअत की रात’ भी कहते हैं क्यों कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मरवी है कि आपने तेरहवीं की रात अल्लाह तआला से अपनी उम्मत की शफाअत की दुआ मांगी, अल्लाह ने एक तिहाई उम्मत की शफाअत मरहमत फ़माई और आपने चौदहवीं की रात फिर उम्मत की शफाअत की दुआ की तो अल्लाह तआला ने दो तिहाई उम्मत की शफाअत की इजाजत मरहमत फ़रमाई। फिर आपने पन्द्रहवीं की रात अपनी उम्मत की शफाअत की दरख्वास्त की तो अल्लाह तआला ने तमाम उम्मत की शफाअत मन्जूर फ़रमाई मगर वह शख़्स जो रहमते इलाही से ऊँट की तरह दूर भाग गया और गुनाहों पर इसरार करके खुद ही दूर से दूर तर होता गया (इस शफाअत से महरूम रहेगा )

इसे ‘बख्शिश की रात’ भी कहते हैं इमाम अहमद रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अल्लाह तआला पन्द्रह शाबान की रात अपने बन्दों पर ज़ुहूर फ़रमाता है और दो शख़्सों के इलावा दुनिया में रहने वाले तमाम इंसानों को बख़्श देता है, उन दो में से एक मुशरिक और दूसरा कीना परवर है।

इसे ‘आज़ादी की रात’ भी कहा जाता है नबी करीम स० ने हजरते आइशा रजि से फरमाया कि 15 शाबान की रात में अल्लाह तआला बनू कलब के रेवड़ों के बालों के बराबर लोगों को आग से आज़ाद फरमाता है मगर छः आदमी इस रात भी महरूम रहते हैं। शराब ख़ोर, वालिदैन का नाफरमान, आदी जानी, कातए रहम, चंग व रबाब बजाने वाला, चुगल खोर। एक रिवायत में रबाब बजाने वाले की जगह मुसव्विर का लफ़्ज़ है।

इसे ‘क़िस्मत और तक़दीर की रात’ का नाम भी दिया गया है क्योंकि अता बिन यसार से मरवी है कि जब शबान की पन्द्रहवीं रात आती है तो मलकुलमौत को हर उस शख़्स का नाम लिखवा दिया जाता है, जो उस शाबान से आइन्दा शाबान तक मरने वाला होता है, आदमी पेड़ लगाता है, औरतों से निकाह करता है, इमारतें बनाता है हालांकि उसका नाम मुर्दों में होता है और मलकुलमौत इस इन्तेज़ार में होता है कि उसे कब हुक्म मिले और वह उसकी रूह कब्ज़ करे।

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