उमेश कुमार सिंह
आप हिंदी साहित्य में वन डे मैच के साथ-साथ टेस्ट मैच के भी खिलाड़ी हैं। दूसरे शब्दों में, यह कह सकते हैं कि आप साहित्य की दुनिया में लंबी पारी खेलने के लिए आये हैं। आपकी रचना पढ़कर ऐसा महसूस होता है कि आपमें साहित्य का असली खजाना छुपा हुआ है और आपके पास विषयों की कमी नहीं है, जो बारी-बारी से पाठकों के सामने पेश होते रहेंगे।
मंडप पर सात फेरे ले लेने के बाद सिर्फ दो जिंदगियों का मेल नहीं होता, एक रिश्ता होता है, कुछ बातें होती हैं, कुछ जज्बात होते हैं, जो जन्मों तक चलते हैं। मैं तो अपने समाज में मानवीय रिश्ते को स्थापित करने का पक्षधर हूँ। इसी उद्देश्य से एक सच्ची घटना को कलात्मक रूप दे रहा हूँ। किरचे एक बहुअयामी उपन्यास है, जो कई मुद्दों को एक साथ लेकर चलता है और कई अवधारणाओं को धराशायी भी करता है।
नायक जातीय ग्रंथि से ग्रसित होकर एक योजना के तहत वाइफ स्वैपिंग या की-पार्टी को अंजाम देता है। नायक मोहित की जातीयता को लेकर जो विचार हैं, अनुभव हैं वह लेखक से मेल खाते हैं। मोहित ने अपने जीवन में जो कठिनाइयाँ झेलीं या जाति के नाम पर समाज ने उसे जो प्रताड़नाएँ दीं वे लेखक के वास्तविक जीवन से मेल खाती हैं।
लेखक उन प्रताड़नाओं को सीढ़ी बनाकर ऊपर चढ़ता चला गया, परंतु नायक मोहित की भाँति लेखक के मन में पीड़ा सदा बनी रही कि समाज ने जाति के आधार पर उसे निकृष्ट घोषित कर दिया, जबकि वह प्रतिभा में किसी से कम नहीं था। यह पीड़ा मोहित के भीतर हीनता ग्रंथि बनकर बैठ गयी और इसी ग्रंथि ने प्रतिशोध को जन्म दिया। इस प्रतिशोध ने दोस्त, प्रेमिका, पत्नी, बेटे को सभी को निगल लिया।
‘या फिर’ एक ही तरह की दाल बार-बार खायी जाऐ तो मुँह का स्वाद बिगड़ जाता है।‘ यह वाक्य पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका के संदर्भ में लिखे गये हैं। इन्हें एक दो बार तो अनदेखा किया जा सकता है, परंतु इनका बार-बार आना लेखक की सहमती को दर्शाता हैं। लेखक उपन्यास में जिस कपल स्वैपिंग या की-पार्टी की बात करते हैं उसमें कोई भी स्त्री पात्र सहर्ष स्वीकृति नहीं देता।
पुरुष अपनी उच्छृंखलता के लिए स्त्री पात्र को विवश करते हैं कि वह भी उसमें शामिल हो। पितृसत्तात्मक समाज की तानाशाही इतनी कि जिस की पार्टी को स्त्री स्वतंत्रता से जोड़कर देखा जा रहा है वास्तव में उस पार्टी में भी स्त्री इच्छा कोई महत्व नहीं रखती।
लेखक ने मूल गंभीर मुद्दे और सामाजिक चुनौतियों को और अधिक नवीनता और नये विषय देकर समाज की समस्याओं को नये अंदाज और शैली में बताने की कोशिश की है। नये शैली में नये और पुराने विषयों का संयोजन करके यूनिक उपन्यास लिखे जाने के कारण यह उपन्यास मील का पत्थर साबित होगा।