हिंदी भाषा की चुनौतियां एवं संभावनाएं
अगर किसी राष्ट्र को नष्ट करना हो तो सबसे पहले उसकी भाषा खत्म कर दीजिए, राष्ट्र स्वयं नष्ट हो जाएगा। अंग्रेजी के कई शब्द अब हिंदी में स्वीकार कर लिए गए हैं और हिंदी के कई पुराने शब्द प्रचलन से बाहर हो गए हैं। इन सब ने हिंदी को काफी नुकसान पहुंचाया है। अंग्रेजी की जिस जंजीर से हमने खुद को जकड़ रखा है, उसे तोड़ना होगा। अंग्रेजी का प्रभाव इस हद तक बढ़ रहा है कि हमारे बच्चे अब ग्यारह बारह, छियासी नहीं समझते हैं बल्कि अंग्रेजी के अंकों को ही समझते और बोलते हैं। एक सच्चाई यह भी है कि हिंदी के विकास के बावजूद इसकी पूरी वर्णमाला, पूरी गिनती या हिंदी महीनों के नाम बहुत कम लोगों को याद होंगे। ज्यादातर कामकाजी लोगों को कंप्यूटर पर काम करना होता है। ऐसे में उन्हें संवाद से लेकर लेखन तक में अंग्रेजी मिश्रित हिंदी का उपयोग करना पड़ता है। हेलो, हाय, थैंक्यू, एसक्यूज़ मी, डिनर, लंच, फिटनेस, ग्लैमर, कांग्रेचुलेशन, नाइस पिक, मीटिंग जैसे जाने कितने अनगिनत अंग्रेजी शब्द हमारी बोलचाल की हिंदी भाषा में घुस चुके हैं। हमें एहसास भी नहीं होता कि हमारी हिंदी का प्रयोग कितना बदल गया है। यह तो हाइब्रिड दौर है, मोबाइल चार्ज करना है, ईएमआई जमा करना है, तो अंग्रेजी से गुजरना ही होगा। आजकल भारत में लगभग 83% लोग हिंदी और अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल एक साथ करते हैं किन्तु यह हिन्दी के विकास में बाधक ही है। हिन्दी भाषी प्रदेशों में अंग्रेजी भाषा में सड़कों के संकेत दुकानों के नामपट्ट, विवाह, शादी समारोह में निमंत्रण पत्र अंग्रेजी भाषा में छपते है। हिंदी भाषी क्षेत्रों के लोगों को अंग्रेजी के बहिष्कार तथा हिंदी के उपयोग का दृढ़ संकल्प लेना चाहिए।
हिंदी को आज हम विश्व का नेतृत्व करने वाली भाषा के रूप में देखते हैं। आज दुनिया की आबादी के हिसाब से हर छठा व्यक्ति हिंदी बोलने और समझने लगा है। देश में 45.63 फ़ीसदी यानी 53 करोड़ लोगों की मातृभाषा हिंदी हैं। 13.9 करोड यानी एक 11 फीसदी से अधिक की यह दूसरी भाषा है। 55 फीसदी भारतीयों की मातृभाषा या दूसरी भाषा हिंदी है। दुनिया में 64.6 करोड़ से ज्यादा लोग हिंदी भाषी हैं। हिन्दी भाषा की लोकप्रियता भारत के अतिरिक्त लगभग 40% भूभाग पर फैल चुका है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 77% लोग हिंदी बोलते और समझते हैं। विश्व में लगभग 50 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं। देश का लगभग 60% बाजार हिंदी बोलने वाले लोगों का है। तकनीक ने हिंदी का विस्तार सात समुंदर पार तक पहुंचा दिया है। हिंदी अपने आप में एक समर्थ भाषा है। जहां अंग्रेजी में मात्र 10 हजार मूल शब्द है, वही हिंदी के मूल शब्दों की संख्या 2 लाख 50 हजार से भी अधिक है। भारत में केवल 2% लोग ही अंग्रेजी जानते हैं। आज जर्मन, जापान, चीन, अमेरिका आदि ने अंग्रेजी को नकार कर अपनी-अपनी भाषा में अपने-अपने देशों की प्रगति हर क्षेत्र में कर ली है तो हम हिंदुस्तानी क्यों नहीं कर सकते? हिंदी सबसे प्रभावी संचार माध्यम होनी चाहिए। हिन्दी भाषा अन्य भाषाओं की तुलना में आसान है।
विश्व के अनेक देशों में लिपि के नाम पर केवल चित्रात्मक विधियां हैं। तब भी वे देश उन्नति के मामले में शीर्ष पर हैं। रूस, चीन, जर्मनी, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, जापान, नीदरलैंड आदि देशों के उदाहरण सबके सामने हैं। बोली की दृष्टि से हिंदी विश्व मे द्वितीय स्थान पर है, जबकि प्रथम बड़ी बोली मंदारिन है, जिसका प्रभाव दक्षिण चीन के क्षेत्र में सीमित है। क्योंकि उसका जनघनत्व और जनबल बहुत है। इस नाते वह विश्व की सबसे अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है, पर वह आंचलिक ही है।
भारत में 22 आधिकारिक भाषाओं में हिंदी, असमी, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़ीसा, पंजाबी, संस्कृत, संताली, सिंधी, तमिल, तेलुगु, बोडो, डोगारी, बंगाली एवं गुजराती सम्मिलित है। अंग्रेजों ने भारतीय भाषाओं की अनेक कृतियों को प्रतिबंधित किया। जिनमें हिंदी में 264 कविताएं, उर्दू में 58 कविताएं, तमिल में 19, तेलुगु में 10, पंजाबी और गुजराती में 22-22, मराठी में 123, सिन्धी में 9, ओडिया में 11, बंगला में 24 और कन्नड़ में एक कविता है। यह दिखाता है कि किस तरह राजभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं ने स्वतंत्रता संघर्ष को मजबूत किया, जिसकी वजह से अंग्रेजों को उन पर पाबंदी लगानी पड़ी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सन् 1917 में सबसे पहले हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता प्रदान की थी।
हिंदी भारत देश की सार्वभौम भाषा बन गई है और इसके अपना अधिकार प्राप्त किया है भाषाओं के बीच एक दौड़ थी और हिंदी में दौड़ लगाई है और अब आप इस से नहीं रोक सकते हैं। हिंदी के पीछे विशाल दुनिया है। हिंदी कोई क्षेत्रीय भाषा नहीं है, उसके कई बड़े द्वार हैं, जो दुनिया की तरफ खुलते हैं। तकनीक ने भाषा के विकास में बड़ी भूमिका निभाई है। तकनीक के चलते ही हम दुनिया के कोने-कोने से जुड़ कर बात कर पा रहे हैं। समाज की उन्नति से ही भाषा का विकास होगा। भाषा और साहित्य के क्षेत्र में अधिक शोध होने चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण हिंदी के प्रति यदि आकर्षण बढ़ाना है तो समाज के आकर्षण को बढ़ाना हो।
डॉ नन्दकिशोर साह