खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर होता भारत

7 जून वैश्विक खाद्य सुरक्षा दिवस पर विशेष-

जून वैश्विक खाद्य सुरक्षा दिवस पर विशेष-

खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर होता भारत

– सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”

सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”

‌‌ एक समय था जब भारत अपनी खाद्यान्न आपूर्ति के लिये दूसरे देशों की दया पर निर्भर था। हमारे पास न उस समय कृषि के साधन थे, और न ही उन्नत तकनीक थी। फलतः आज का वही कृषक पहले अपनी कृषि से वैसा उपज नहीं प्राप्त कर पाता था, जैसा कि आज वह प्राप्त कर रहा है। आज कई मायनों में भारत खाद्यान्नों के मामले में अब आत्म निर्भर हो चुका है। इस संबंध में समाजशास्त्रियों का भिन्न-भिन्न मत है।

कुछ कहते हैं कि ये ठीक है कि आज हम खाद्यान्न उपज के मामले में पूर्व से बहुत बेहतर हैं

कुछ कहते हैं कि ये ठीक है कि आज हम खाद्यान्न उपज के मामले में पूर्व से बहुत बेहतर हैं, पर आज हमारी जनसंख्या भी तो बहुत बढ़ गई है, जिससे हमारी खाद्यान्न उत्पादन की बढ़ी हुई क्षमता तो जैसी की तैसी ही रह गई अर्थात हम जहाँ पहले वे आज भी वहीं है कोई परिवर्तन नहीं है।

जबकि दूसरे मत के समाजशास्त्री कहते हैं कि भारत में जनसंख्या की वृद्धि हुई है यह सही बात है, पर इस तथ्य को भी हमें नहीं भूलना चाहिये कि यहाँ अब श्रम करने वाले हाथ भी तो उतने ही बढ़ गये हैं, जो खाद्यान्न उत्पादन के लिये आवश्यक है। अर्थात जहाँ कम क्षेत्रफल में कम हाथों (श्रमजीवी किसान) द्वारा जो कार्य किया जा रहा था।

बहुत सीमित एरिया सीमित मात्रा में था, वह अब असीमित होकर हमारी क्षमता को बेहतर और वृहत्तर बना रहा है।

वैसे दूसरा मत वास्तविकता के नजदीक जान पड़ता है, ऐसा मुझे लगता है। एक दिन मैं एक पुरानी पत्रिका “नवनीत” जो मई 1973 को प्रकाशित हुई थी, उसके पृष्ठ को पढ़ रहा था तो उसमें एक जगह सरकारी विज्ञापन दिखाई दिया जिसमें लिखा था,….” कम अनाज खाइये “खाद्यान्नों के मूल्य कम करना आपके हाथ में है, गेहूँ चावल कम खाईये, सप्ताह में कम से कम एक बार बिना अनाज का “भोजन लीजिये।”

उक्त विज्ञापन से साफ जाहिर होता है कि आज से कुछ वर्षों पूर्व हम खाद्यान्न के मामले में बहुत पीछे थे, हमारे यहाँ खाद्यान्नों जैसे गेंहू, चावल की बहुत कमी थी, तभी तो सरकार ने मजबूर होकर ऐसा विज्ञापन दिया रहा होगा।

पर क्या आपने आजकल गत वर्षों में ऐसा कुछ विज्ञापन देखा है….? इसका जवाब होगा बिलकुल नहीं। इसका मतलब यही हुआ न कि अब हमारे यहाँ वैसी स्थिति नहीं है जैसी पहले हुआ करती थी। अब तो यह स्थिति है कि अब हम चायपत्ती उत्पादन में विश्व में प्रथम चावल में द्वितीय, गेहूँ में, तीसरी एवं चीनी उत्पादन में दूसरे, कपास में भी दूसरा स्थान पर है।

देश में चावल का सर्वाधिक उत्पादन करने वाला राज्य प. बंगाल एवं दूसरा आंध्र प्रदेश है, किंतु चावल की प्रति हेक्टेयर उपज पंजाब में सर्वाधिक है, मध्यप्रदेश आज देश में, सोयाबीन का उत्पादन करने वाला सबसे बड़ा राज्य है। देश में मध्यप्रदेश ज्वार में प्रथम, तुअर में तथा अन्य दालों में द्वितीय, गेहूँ एवं चने में तृतीय और धान (चावल) में तीसरा स्थान रखता है। किंतु प्रतिव्यक्ति औसत उत्पादन में पंजाब और हरियाणा के पश्चात तृतीय है।


अड़तीस करोड़ की जनता के लिए हर पेट को भोजन मिल सके और सब की पूर्ति हो सके। इसके लिए इतना अनाज जिसे शीतकेंद्रों, अनाज गोदामों व अनाज केंद्रों में रखने की वैसी ही सुदृढ़ व्यवस्था का होना अत्यंत ही आवश्यक है।

इसके लिए भारत के हर राज्य में हर जगह हर स्थान में एक निश्चित योजना के अनुरूप बड़े-बड़े खाद्यान्न गोदामों की श्रृंखला विभिन्न राज्य सरकारें एवं केंद्र सरकार सुंदर योजना बनाकर तैयार किया जाना आवश्यक है। तभी तो हम करोड़ों मीट्रिक टन अनाजों को हम सुरक्षित और उपयोगी बनाकर रख सकेंगे। यह उतना ही आवश्यक तथ्य है, जितना कि अनाज का उत्पादन और उसकी सुरक्षाका ख्याल रखना उतना ही जरूरी है जितना कि उसका उत्पादन करना।

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