विविध त्यौहार, उत्सव, और मेले भारतीय संस्कृति की अन्यतम विशेषता है। अच्छी बात यह है कि हमारे सभी त्यौहार कहीं न कहीं संस्कार, संस्कृति, धर्म, अध्यात्म से जुड़े हुए हैं, विज्ञान सम्मत है तथा आस्था और विश्वास की मजबूत नींव पर खड़े हैं।आज के व्यावसायिक जीवन में, अपनों के लिए समय न निकाल पाने वाले माहौल में इन त्यौहारों का महत्त्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इनका प्रमुख उद्देश्य परिवार और समाज को एकजुट करते हुए मानव जीवन में हर्ष , उल्लास, उत्साह,जोश भरते रहना हैं । सभी त्यौहार जीवन में परिवार तथा आस-पड़ोस के महत्व को प्रतिपादित करते हैं तथा पारिवारिक सदस्यों, नाते-रिश्तेदारों,मित्र- मंडली तथा पड़ोसियों के मध्य संबंधों की डोर को मजबूत करते हैं तथा भाईचारा और समन्वय को स्थायित्व प्रदान करते हैं। इन त्यौहारों में दीपोत्सव का विशेष स्थान है क्योंकि यह त्यौहार देश की आर्थिक और व्यापारिक गतिविधियों में बहुत तेजी लाता है, अर्थव्यवस्था को सशक्त करता है तथा आत्म-निर्भर भारत, स्वावलंबी भारत, वोकल फार लोकल भारत, स्वदेशी भारत (आंदोलन) के भाव को जगाता हुआ भारतीय निर्माताओं, विक्रेताओं तथा क्रेताओं के चेहरों पर मुस्कान का कारण बनता है। वास्तव में यह त्यौहार छोटे-बड़े व्यापारियों के लिए, छोटे-बड़े दुकानदारों के लिए पिछले वर्ष के नफे-नुकसान का आंकलन करते हुए कारोबार को नवीन ऊर्जा , नवीन सोच, नवीन विचार, नवीन तकनीक, के माध्यम से नवीन ऊंचाइयों पर पहुंचाने का एक सुनहरा अवसर भी है।
दीपोत्सव के दौरान अधिकांश भारतीय धन की देवी लक्ष्मी,विद्या की देवी सरस्वती तथा सदबुद्धि के देवता श्रीगणेश की पूजा, अराधना करते हैं और समृद्धि की कामना करते हैं।यह पूजन संकेत है कि मनुष्य जीवन में शिक्षा(पढ़ाई-लिखाई, संस्कार-सस्कृति, कौशल आदि),धन(रुपए- पैसा, संसाधन आदि), बुद्धि(विवेक आदि) के महत्त्व को समझे और सोच-विचार कर, सही-ग़लत ,हित-अनहित में अंतर करते हुए आचरण करे।
दीपोत्सव के एक माह पूर्व और एक माह बाद तक व्यापारिक गतिविधियों में तेजी देखी जा सकती है। बाजार सजे-धजे रहते हैं और ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, फिर चाहे वह माॅल हो, या फिर बर्तन, वस्त्र, आभूषण,साज सज्जा, किराना, मिष्ठान-नमकीन-मेवे , गिफ्ट आइटम,पूजा सामग्री तथा भगवान के वस्त्र-आभूषण, आतिशबाजी आदि विविध वस्तुओं की दुकानें हों, इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम , वाहन (दो पहिए से लेकर चार पहियों तक ) के शोरूम हों या फिर फुटपाथ पर लगी छोटी-छोटी विविध वस्तुओं की दुकानें हों (दीयें , मोमबत्ती,झालर, फल, फूल- माला,धानी , आकर्षक फोटो,मूर्तियां, झाड़ू आदि) सभी की दीपावली के समय मांग और विक्री बढ़ती है।थोक और फुटकर व्यापारियों द्वारा ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए नया स्टाक रखने, नवोन्मेषी उत्पाद लॉन्च करने, विशेष छूट देने आदि के लिए विशेष योजनाएं आरंभ करने का समय होता है । इसीलिए दीपावली से पहले का समय बाजार में प्रतिस्पर्धा का समय होता है, और हर व्यवसायी और दुकानदार विक्री को बढ़ाने के लिए ग्राहक हितेषी नवाचार तथा रचनात्मक रणनीतियाँ का सहारा लेता है।
उपभोक्ता भी नयी-नयी वस्तुओं के क्रय के लिए इस समय का इंतजार करता है,धन इकट्ठा करता है। बैंक आदि संस्थाएं जहां एक ओर कंज्यूमर्स लोन को आसान शर्तों पर उपलब्ध कराती है, वहीं सरकारी तथा प्रायवेट संस्थाएं अपने अधिकारियों, कर्मचारियों के लिए बोनस देती है,डीए में बढ़ोतरी करती है तथा फेस्टिवल लोन की सुविधा उपलब्ध कराती हैं। सभी का एक ही उद्देश्य रहता है उत्पादन में बढ़ोतरी करना,इंसान की क्रय शक्ति को बढ़ाना, बाजार में मांग और आपूर्ति में तेजी लाना तथा देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करना।
ऐसा देखा गया है कि इन अवसरों पर उपभोक्ता बड़े पैमाने पर, उत्साह और उमंग के साथ यथा क्षमता खरीदारी करते हैं और अपने घरों को साफ-सफाई, रंग-रोगन, लिपाई-पुताई, रोशनी तथा साज- सज्जा आदि से आकर्षक रूप प्रदान करते हैं। उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति भी दीपावली के दौरान अधिक देखी गई है।कई बार इसका कारण छूट और आकर्षक ऑफरों होते हैं तो कई बार बाजार का आकर्षण तथा उपभोक्ताओं की प्रवृत्ति के साथ यह विश्वास कि इस दौरान ली गई वस्तुएं मंगलकारी होती हैं। अच्छी बात यह है कि इन अवसरों पर ग्राहकों की बढ़ी हुई क्रय शक्ति से बाजार में पैसे का प्रवाह अधिक होता है, जो देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत बनाता है। अतः हम विश्वास से कह सकते हैं भारतीय सनातन संस्कृति में इस तरह के त्यौहार, निर्माताओं से लेकर सभी छोटे-बड़े व्यापारियों के लिए एक अवसर होता है, गुणवत्ता युक्त,देशज, स्थानीय उत्पादों की बिक्री के माध्यम से नए ग्राहकों को जोड़ने और पुराने ग्राहकों के साथ संबंधों को और मजबूती प्रदान करने का, स्वयं और देश की अर्थव्यवस्था में सकारात्मक भूमिका निभाने का । क्रेताओं की भी जिम्मेदारी है कि वे फुटकर, फुटपाथ तथा स्थानीय लोगों की वस्तुओं, उत्पादों, कलाकृतियों को महत्व दें, उन्हें भी दीपोत्सव मनाने का अवसर प्रदान करें।आज के डिजिटल युग में, ऑनलाइन शॉपिंग का महत्व भी दीपावली के समय बढ़ जाता है। ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म जैसे अमेज़न, फ्लिपकार्ट, और अन्य ऑनलाइन विक्री के माध्यम इस समय विशेष छूट और ऑफरों के साथ ग्राहकों को आकर्षित कर अपनी पहुंच को विस्तार देते हैं।
वास्तव में यह समय निवेश और खपत का होता है, जिससे बाजार में मांग और आपूर्ति का संतुलन बना रहता है। छोटे व्यापारी और कारीगरों के लिए यह समय विशेष रूप से लाभकारी होता है, क्योंकि वे अपने उत्पादों को बड़े पैमाने पर बेचने का अवसर पाते हैं। विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन और बिक्री बढ़ने से रोजगार/आमदनी के अवसर भी बढ़ते हैं, जिससे समाज के आर्थिक ढांचे में भी सुधार होता है।
अतः हम कह सकते हैं कि दीपोत्सव न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि व्यापारिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण पर्व है। यह त्यौहार व्यापार जगत में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करता है, गतिशीलता लाता है,नई संभावनाओं को जन्म देता है और अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है।
इस दौरान भारतीय लोगों का विशेषकर सनातनियों के व्यवहार में भी बदलाव देखा जाता है, जहां एक ओर अधिकांश लोगों का पूजा-पाठ, दान-पुण्य की ओर झुकाव बढ़ता है और दीन, दुखी, गरीब,मजबूर,अनाथ आदि लोगों के प्रति समर्पण दिखाई देता है, कर्त्तव्य बोध का एहसास होता है और सहायता करने की इच्छा जागृत होती है। वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इस अवसर का लाभ उठा कर धोखाधड़ी, चोरीचकारी, लूटपाट , छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आते हैं, मिलावट का सहारा लेते हैं, टोने-टोटके और अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं।
सम्पन्न लोगों का गरीबों की सहायता करना, उनके साथ दीपावली मनाना तो एक अच्छा बदलाव कहा जा सकता है, क्योंकि यह कृत्य अपराध और अपराधिक प्रवृत्तियों को कम करने में मदद करता है। किन्तु लोगों का धोखाधड़ी, जालसाजी, लूटपाट,मिलावट, अंधविश्वास आदि में लिप्त होना कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता।इस पर लोग लगना ही चाहिए।
इस समय बाजारों में ग्राहकों की भीड़ बढ़ जाती है। यातायात की सुगम रुप से व्यवस्था करना कठिन होता है।इस समस्या के लिए जिम्मेदार है दुकानदार और ग्राहक और समाधान भी इनके पास है। दुकानदार मदद कर सकता है अपनी दुकानों तक सीमित रहते हुए, आवागमन के मार्ग को अवरूद्ध न करके और ग्राहक मदद कर सकते हैं अपने वाहनों को निर्धारित स्थानों पर पार्क करके या पब्लिक यातायात व्यवस्था का उपयोग करके।
दीपोत्सव का संबंध कहीं न कहीं साफ- सफाई से भी है जो स्वस्थ रहने के लिए अपने आसपास के वातावरण को साफ-सुथरा रखने की सीख देता तथा बुराइयों से दूर रहने के लिए मन, शरीर और आचरण की पवित्रता और शुद्धि पर बल देता है।यह सचेत भी करता है कि भारत की विश्व प्रदूषक के मानकों की दृष्टि से पहली ही स्थिति अच्छी नहीं है अतः हमें ऐसे कार्य करने से बचना चाहिए जो प्रदूषण में और वृद्धि का कारण बने। हम आतिशबाजी करें, दिये जलाएं, रोशनी करें, अपनी परंपराओं और खुशियों को समुचित रूप से अभिव्यक्त भी करें किंतु हमेशा अति से बचें। कई महानगरों में देखने में आता है कि दीपोत्सव पर जलाए जाने वाले फटाखे प्रदूषण (वायु, ध्वनि,भू) तथा दुघर्टनाओं का बड़ा कारण बनते जा रहे हैं। अतः सीमित और सुरक्षित रुप में आतिश-बाजी विशेष कर ग्रीन आतिशबाजी के उपयोग पर सभी को विचार करना चाहिए।
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लेखक:डा मनमोहन प्रकाश