आकाशगंगा में तारों से अधिक गैस है। आकाशगंगा में मौजूद गैस का भंडार ही तारों के निर्माण का मुख्य स्रोत है।

वैज्ञानिकों ने हाल ही में ऊष्मा उत्पन्न करने वाले और ज्वलंत गैस को यथा स्थिति में बनाए रखने वाले रहस्मयी स्रोतों का पता लगा लिया है, किन्तु अभी तक इस खगोलिय घटना का कोई कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है। आकाशगंगा में तारों से अधिक गैस है। आकाशगंगा में मौजूद गैस का भंडार ही तारों के निर्माण का मुख्य स्रोत है। गैस की इस प्रचुर मात्रा ने आज तक तारों के निर्माण की प्रक्रिया को बनाए रखने में मदद की है।

हालाँकि, गैसों की कमज़ोर प्रकृति के कारण, खगोलविदों के लिए इन गैसीय पदार्थों को देखना और मापना बेहद मुश्किल है। लेकिन कुछ दशक पहले हुए अध्ययनों ने हमारी आकाशगंगा के चारों ओर गैसीय पदार्थ की उपस्थिति का पता लगाया। इन अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ कि आकाशगंगा गैस के एक बड़े गोले से घिरी हुई थी जो कुछ मिलियन डिग्री केल्विन गर्म थी। गैस का यह गोला 700 हज़ार प्रकाश वर्ष तक फैला हुआ था।

शोधकर्ताओं के अनुसार उच्च तापमान की यह स्थिति आकाशगंगा के गुरुत्वाकर्षण से जुड़ी हो सकती है, क्योंकि परमाणुओं को आकाशगंगा में उपस्थित शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण बल से बचने के लिए लगातार चक्कर लगाना पड़ता है। लेकिन हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने जिस गैसीय पदार्थ की खोज की थी वह पहले से ज्ञात गैसीय पदार्थ से भी अधिक गर्म था। इस गैसीय पदार्थ का तापमान लगभग दस मिलियन डिग्री केल्विन पाया गया। आकाशगंगा की सभी दिशाओं में हल्के एक्स-रे उत्सर्जन पाए गए, जो एक अति-गर्म गैस के मजबूत संकेत थे। साथ ही, यह गैस कम से कम दूर के तीन क्वासरों के स्पेक्ट्रा में अवशोषित रूप में भी दिखाई दी।

इस खगोलीय घटनाक्रम ने एक गहन अनुसंधान क्षेत्र के द्वार खोले और तब से खगोलशास्त्री ऊष्मा उत्पन्न करने वाले और ज्वलंत गर्म गैस को यथा स्थिति में बनाए रखने वाले स्रोतों के बारे में पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा वित्तपोषित स्वायत्त संस्थान, रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) के वैज्ञानिकों ने आईआईटी -पलक्कड़ और ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के अपने सहयोगियों के साथ मिलकर दो संबंधित अध्ययनों में अपने प्रस्तावित मॉडल के माध्यम से रहस्यमयी स्रोत के बारे में विस्तार से जानकारी दी है।

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उन्होंने पुष्टि की है कि खगोलविदों द्वारा पता लगाए गए संकेतों को उत्सर्जित करने और अवशोषित करने के लिए एक गैस ही जिम्मेदार नहीं थी। बल्कि यह एक्स-रे उत्सर्जित करने वाली गर्म गैस आकाशगंगा की तारकीय डिस्क के चारों ओर फूले हुए एक क्षेत्र के कारण थी। चूँकि आकाशगंगा की डिस्क के परे विभिन्न क्षेत्रों में लगातार तारों का निर्माण होता रहता है, इसलिए इन क्षेत्रों में विशाल तारे सुपरनोवा के रूप में विस्फोट करते हैं, और डिस्क के चारों ओर गैस को उच्च तापमान तक गर्म करते हैं। आरआरआई में पीएचडी छात्र मुकेश सिंह बिष्ट ने कहा कि इस प्रकार के विस्फोटों से आकाशगंगा की डिस्क के चारों ओर तैरती गैस गर्म होती रहती है और गैसीय पदार्थ को विशाल तारों में संश्लेषित करती है।

जैसे ही यह गैस डिस्क से ऊपर उठती है और तेजी से घूमती है, या तो यह आसपास के माध्यम में चली जाती है या फिर ठंडी होकर वापस डिस्क पर ही गिर जाती है। अवशोषण अध्ययनों के मामले में विशाल गैसीय पदार्थ के अति गर्म तापमान के साथ-साथ, इसकी मौलिक संरचना ने भी खगोलविदों को आश्चर्यचकित कर दिया। अवशोषित करने वाली यह गर्म गैस α-तत्वों से समृद्ध पाई गई। आरआरआई के संकाय और दोनों शोधपत्रों में योगदान देने वाले लेखकों में से एक बिमन नाथ ने बताया कि यह ज्वलनशील गैस आकाशगंगा की कुछ दिशाओं में सल्फर, मैग्नीशियम, नियॉन आदि जैसे α-तत्वों की बड़ी मात्रा से समृद्ध प्रतीत होती है,

.जिनके नाभिक हीलियम नाभिक के गुणक के अलावा कुछ नहीं हैं। यह तारकीय कोर के भीतर होने वाली परमाणु प्रतिक्रियाओं का एक महत्वपूर्ण सुराग है। ये तत्व सुपरनोवा विस्फोटों के दौरान विशाल तारों से बाहर गिर जाते हैं। यद्यपि हजारों की संख्या में आकाशगंगा का चक्‍कर लगाते हुए तारे लगातार आकाशगंगा डिस्क से बाहर चले जाते हैं और उनमें से जो तारे तारकीय डिस्क के ऊपर मंडराते हैं, सुपरनोवा के रूप में विस्फोट करते हैं और संभावित रूप से अपने चारों ओर ए-समृद्ध और ज्वलंत गैस का आवरण बनाते हैं।

श्री बिष्ट ने कहा कि यदि तारे प्रकाश क्वासर के दूरवर्ती स्रोतों की दिशा के अनुरूप हो जाते हैं, तो इस गर्म गैस में परमाणु छाया संकेतों को अवशोषित करेंगे। इस प्रकार अवशोषित गर्म गैस की व्याख्या की जा सकती है। उसी समय, आकाशगंगा की तारकीय डिस्क में तारा निर्माण गतिविधियों के परिणामस्वरूप, ज्वलंत गर्म गैस का एक आवरण आकाशगंगा डिस्क को घेरता रहता है, जो एक्स-रे उत्सर्जन में देखी गई गर्म गैस के बारे में बताता है।

इस अध्ययन को एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित किया गया था। इस प्रकार उत्पन्न होने वाले रहस्यमयी एक्स-रे संकेतों की विस्तृत जानकारी पाने के लिए और अधिक अध्ययन किया जा सकता है। इस अध्ययन से जुडे वैज्ञानिक अन्य आवृत्तियों में इस मॉडल का परीक्षण करने की योजना बना रहे हैं।

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