पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की 27वीं बैठक यह न केवल केंद्र और राज्य के बीच संवाद का मंच है , बल्कि झारखंड को अपनी अनूठी संभावनाओं और चुनौतियों को राष्ट्रीय पटल पर रखने का मौका भी है I

लेखक –
विजय शंकर नायक केंद्रीय उपाध्यक्ष, आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच , पूर्व विधायक प्रत्याशी।

10 जुलाई 2025 को रांची में होने वाली पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की 27वीं बैठक झारखंड के लिए एक ऐतिहासिक अवसर है। यह न केवल केंद्र और राज्य के बीच संवाद का मंच है, बल्कि झारखंड को अपनी अनूठी संभावनाओं और चुनौतियों को राष्ट्रीय पटल पर रखने का मौका भी है। इस बार, झारखंड को पारंपरिक मांगों जैसे बकाया राशि या संपत्ति बंटवारे से आगे बढ़कर उन अनछुए पहलुओं को उठाना चाहिए जो न केवल राज्य की सरकार के दिमाग से परे हैं, बल्कि दीर्घकालिक और समावेशी विकास का खाका भी खींचते हैं। ये पहल आदिवासी गौरव, पर्यावरण संरक्षण, और युवा सशक्तिकरण को केंद्र में रखकर झारखंड को एक नई पहचान दे सकते हैं।

हरित भविष्य की ओर: झारखंड ग्रीन एनर्जी हब
झारखंड, जो कोयला खदानों के लिए जाना जाता है, अब हरित ऊर्जा का नेतृत्व करने को तैयार है। केंद्र से एक “झारखंड ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर” की मांग उठनी चाहिए, जिसमें सौर पार्क, छोटे हाइड्रो प्रोजेक्ट्स, और ग्रीन हाइड्रोजन संयंत्र शामिल हों। उदाहरण के लिए, गोड्डा और दुमका जैसे क्षेत्रों में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं। एक 100 मेगावाट का सौर पार्क न केवल 20,000 घरों को रोशन कर सकता है, बल्कि 30,000 रोजगार भी सृजित कर सकता है। यह मांग कोयला-निर्भर अर्थव्यवस्था को टिकाऊ भविष्य की ओर ले जाएगी और जलवायु परिवर्तन से निपटने में झारखंड को अग्रणी बनाएगी।

आदिवासी विरासत का संरक्षण: सांस्कृतिक विश्वविद्यालय की जरूरत
झारखंड की आत्मा इसकी आदिवासी संस्कृति में बसती है। संथाल, मुंडा, और हो समुदायों की भाषाएं और परंपराएं विश्व धरोहर का हिस्सा हैं, फिर भी इनके संरक्षण का कोई ठोस ढांचा नहीं है। केंद्र से एक राष्ट्रीय आदिवासी सांस्कृतिक विश्वविद्यालय की स्थापना की मांग उठनी चाहिए। यह विश्वविद्यालय संथाली और मुंडारी जैसी भाषाओं के डिजिटल आर्काइव बनाएगा, आदिवासी कला पर शोध को बढ़ावा देगा, और सांस्कृतिक पर्यटन को प्रोत्साहित करेगा। ओडिशा के कालाहांडी में लोक कला केंद्र ने जिस तरह स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल दिया, उसी तरह रांची में यह विश्वविद्यालय झारखंड को सांस्कृतिक हब बना सकता है।

खनन का दंश मिटाने की पहल: पुनर्जनन कोष


खनन ने झारखंड को आर्थिक रूप से समृद्ध किया, लेकिन धनबाद और रामगढ़ जैसे क्षेत्रों में पर्यावरणीय तबाही और आदिवासी विस्थापन इसका दुखद परिणाम है। केंद्र से एक खनन पुनर्जनन और पुनर्वास कोष की मांग की जानी चाहिए। यह कोष वन पुनर्जनन, स्वच्छ जल, और वैकल्पिक आजीविका जैसे इको-टूरिज्म और जैविक कृषि के लिए उपयोग हो। छत्तीसगढ़ के बस्तर में इको-टूरिज्म ने आदिवासियों को सशक्त बनाया; नेतारहाट और पलामू में भी ऐसी पहल लाखों लोगों का जीवन बदल सकती हैं।

सुदूर क्षेत्रों का कायाकल्प: स्मार्ट विलेज मॉडल


गुमला और लातेहार जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं न के बराबर हैं। केंद्र से स्मार्ट विलेज प्रोजेक्ट के लिए विशेष पैकेज की मांग उठनी चाहिए, जिसमें सौर ऊर्जा, टेलीमेडिसिन, और डिजिटल स्कूल शामिल हों। गुजरात के धोली गांव में स्मार्ट विलेज मॉडल ने ग्रामीण जीवन को बदल दिया। झारखंड में 100 स्मार्ट विलेज नक्सलवाद को कम करने के साथ-साथ आदिवासी समुदायों को मुख्यधारा से जोड़ सकते हैं।

युवा शक्ति का उभार: विश्वस्तरीय स्पोर्ट्स एकेडमी


झारखंड ने सलीमा टेटे और दीपिका कुमारी जैसी प्रतिभाएं दी हैं, लेकिन ग्रामीण युवाओं को विश्वस्तरीय प्रशिक्षण का अभाव है। केंद्र से झारखंड स्पोर्ट्स एकेडमी की स्थापना की मांग उठनी चाहिए, जो हॉकी, तीरंदाजी, और एथलेटिक्स में अंतरराष्ट्रीय कोचिंग और सुविधाएं प्रदान करे। भुवनेश्वर का कलिंग स्टेडियम हॉकी का गढ़ बन चुका है; जमशेदपुर में ऐसी एकेडमी झारखंड के युवाओं को ओलंपिक मंच तक ले जा सकती है।

जलवायु संकट से जंग: विशेष अनुकूलन नीत


पलामू और गढ़वा जैसे क्षेत्र सूखे की मार झेल रहे हैं, जबकि जंगल की आग और बाढ़ झारखंड के लिए नई चुनौतियां हैं। केंद्र से एक पूर्वी भारत जलवायु अनुकूलन नीति की मांग की जानी चाहिए, जिसमें जल संरक्षण, जलवायु-स्मार्ट कृषि, और वन पुनर्जनन के लिए विशेष अनुदान हो। राजस्थान का “मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान” इसका एक आदर्श उदाहरण है। ऐसी नीति झारखंड के किसानों और आदिवासियों को जलवायु संकट से निपटने में सशक्त बनाएगी।

निष्कर्ष: झारखंड का नया युग


ये मांगें झारखंड को केवल आर्थिक बकाये की याचना से ऊपर उठाकर एक दूरदर्शी और आत्मनिर्भर राज्य की पहचान दिलाएंगी। यह समय है कि झारखंड अपनी आदिवासी विरासत, प्राकृतिक संसाधनों, और युवा शक्ति को केंद्र में रखकर विकास का नया मॉडल प्रस्तुत करे। पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की यह बैठक झारखंड के लिए वह मोड़ हो सकती है, जहां से राज्य न केवल अपनी समस्याओं का समाधान खोजे, बल्कि पूर्वी भारत के लिए एक प्रेरणा भी बने।

केंद्र सरकार से अपेक्षा है कि वह इन मांगों को गंभीरता से ले और झारखंड के सपनों को साकार करने में भागीदार बने। झारखंड की मिट्टी में क्रांति की ज्वाला धधक रही है। यह समय है उस ज्वाला को एक सूरज में बदलने का, जो न केवल झारखंड, बल्कि पूरे विश्व को रोशन करे। हर आदिवासी, हर युवा, और हर झारखंडी का सपना अब उड़ान भरेगा—क्योंकि झारखंड का समय आ गया है! आइए, इस बैठक को झारखंड के गौरवशाली भविष्य का प्रारंभ बनाएं। यह न केवल एक राज्य का उदय है, बल्कि भारत के स्वप्निल भविष्य की एक नई गाथा है!

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