गोंडा। देश में कई दशक पूर्व पंचायती राज अधिनियम के लागू होने के बावजूद जिले के हलधरमऊ विकासखंड क्षेत्र अंतर्गत अनेकों ग्राम पंचायतों में महिला ग्राम प्रधान अपनी भूमिका को पूरी तरह निभा पाने में असमर्थ हैं। इस तरह से हलधरमऊ क्षेत्र में 35 ग्राम पंचायतों की प्रधानी घर की ड्योढ़ी तक सिमट कर रह गई है। उनका ज्यादातर काम उनके पति या पुत्र प्रधान प्रतिनिधि बनकर निपटाते रहते हैं।
जबकि शासन व सरकार की मंशा है कि हर क्षेत्र में महिलाएं आगे बढ़ें लेकिन इस पर पानी फिरता नजर आ रहा है। महिला ग्राम प्रधानों को उनके परिवार के लोग ही आगे नहीं निकलने दे रहे हैं और बाधक बने हुए है। साथ में जिम्मेदार विभागीय अधिकारी व कर्मचारी पंचायती राज अधिनियम को पलीता लगा रहे हैं। इससे सरकार की महिलाओं को सशक्त बनाने की मंशा पर पानी फिरता नजर आ रहा है।
हलधरमऊ क्षेत्र की 68 ग्राम पंचायतों में से 35 में महिला ग्राम प्रधान निर्वाचित हैं, जो संख्या के लिहाज से आधे से अधिक है। इनमें सुमन तिवारी (वमडेरा), अरुणिमा देवी (भैरमपुर), रश्मि सिंह (भुलभुलिया), सीमा साह (कैथोला), पुष्पा देवी (खानपुर), उर्मिला (नकहा बसन्त), सुमन सिंह (देवी तिलमहा), इंदू तिवारी (झौंहना), मैशरुन्निशा (मीनापुर), वजबुन्निशा (बरबटपुर), सुरुचि (मलौना), आसमीन (खिंदूरी), कुसमा देवी (अमोढवा), लखपता देवी (बांसगांव), आशा (धमसड़ा), श्रीमती (बटौरा लोहांगी), सुधा सिंह (सिकरी), रेखा तिवारी (मैजापुर), उमा देवी (नगवाकला), राजपति (रेवारी), सीता (सेल्हरी), कमला देवी (नहवा परसौरा), जनकनन्दनी (सोनवार), सविता (दत्तनगर), शबाना (पिपरी रावत), सुमन श्रीवास्तव (बसालतपुर), शान्ति देवी (भटनैया), नूरसबा (अखरेड़ा), आशा सिंह (बालपुर हजारी), सुमन (कस्तूरी), रामावती (गौरवाखुर्द), गीता सिंह (धोबहाराय), वन्दना सिंह (उमरिया), शिखा (पहाड़ापुर) और शीला देवी (कमालपुर) जैसी 35 महिलाएं ग्राम प्रधान हैं।
इसके के बावजूद ग्राम पंचायतों व विकासखंड की बैठकों में उनकी भागीदारी न के बराबर है। परिवार के पुरुष सदस्यों द्वारा कार्य संभालने के कारण पंचायती राज अधिनियम का मूल उद्देश्य प्रभावित हो रहा है। सहायक खंड विकास अधिकारी राजेश कुमार वर्मा का कहना है कि महिला ग्राम प्रधानों को प्रोत्साहित करने और उनके दायित्वों के प्रति जागरूक करने के लिए समय-समय पर प्रयास किए जा रहे हैं। फिर भी, सामाजिक और पारिवारिक बाधाएं महिलाओं को स्वतंत्र रूप से नेतृत्व करने से रोक रही हैं। यह स्थिति न केवल महिला सशक्तिकरण की राह में रुकावट है, बल्कि पंचायती राज व्यवस्था की मूल भावना को भी कमजोर कर रही है।