मध्य-पूर्व में गाजा शांति सम्मेलन: पीएम मोदी ने विदेश राज्यमंत्री कीर्तिवर्धन सिंह को शर्म-अल-शेख भेजकर दिया बड़ा संदेश

गोण्डा। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह को शर्म अल-शेख, मिस्र में आयोजित हो रहे अंतरराष्ट्रीय शांति शिखर सम्मेलन में अपना विशेष दूत (Special Envoy) बनाकर भेजा है। यह सम्मेलन गाज़ा में जारी संघर्ष को समाप्त करने और क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित करने के उद्देश्य से बुलाया गया है।

मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सीसी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस सम्मेलन की सह-अध्यक्षता कर रहे हैं,जिसमें लगभग बीस से अधिक देशों के शीर्ष नेता और प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
भारत के प्रधानमंत्री द्वारा विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह को विशेष प्रतिनिधि के रूप में भेजने का निर्णय भारत की विदेश नीति के संतुलन और क्षेत्रीय कूटनीतिक स्थिति को ध्यान में रखकर लिया गया है। भारत ने हमेशा मध्य पूर्व के संघर्षों में मानवीय दृष्टिकोण और शांति समाधान का समर्थन किया है, और विशेष दूत भेजकर यह संदेश दिया है कि भारत शांति प्रक्रिया में निष्क्रिय पर्यवेक्षक नहीं, बल्कि एक रचनात्मक भागीदार बनना चाहता है। यह सम्मेलन विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उस समय हो रहा है जब इज़रायल और हमास के बीच संघर्ष विराम और बंदी-विनिमय पर शुरुआती सहमति बनी है।

सम्मेलन का उद्देश्य स्थायी युद्धविराम, पुनर्निर्माण के लिए वित्तीय और मानवीय सहयोग व्यवस्था, तथा सुरक्षा तंत्र के लिए स्पष्ट दिशा तय करना है। इस बैठक में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और इटली सहित अनेक देशों के नेता शामिल हैं। इसीलिए इसे मध्य पूर्व की राजनीति और वैश्विक कूटनीति का ऐतिहासिक मंच माना जा रहा है। भारत द्वारा कीर्तिवर्धन सिंह को भेजने के पीछे कई रणनीतिक कारण निहित हैं।

पहला, यह कदम भारत की उस संतुलित कूटनीतिक नीति को दर्शाता है जिसके तहत वह वैश्विक मंच पर सभी पक्षों के साथ संवाद बनाए रखने पर जोर देता है। दूसरा, इस सम्मेलन में भारत की सक्रिय उपस्थिति यह संदेश देती है कि भारत वैश्विक शांति प्रयासों में रचनात्मक और जिम्मेदार भूमिका निभाने के लिए प्रतिबद्ध है।

तीसरा,यह भारत की “ग्लोबल प्रॉब्लम सॉल्विंग नेशन” के रूप में उभरती पहचान को और सशक्त करता है, एक ऐसा राष्ट्र जो विश्व के विवादों का शांतिपूर्ण समाधान खोजने में विश्वास रखता है। भारत ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से प्रेरित होकर सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार मानता है, जहाँ शांति और सहअस्तित्व सर्वोच्च मूल्य हैं। बुद्ध और महावीर की इस पवित्र भूमि ने सदैव शांति, करुणा और अहिंसा के सिद्धांतों का प्रचार किया है।

मानवीय सहायता के क्षेत्र में भी भारत निरंतर अग्रणी रहा है, चाहे वह कोविड-19 महामारी के दौरान दवाओं और वैक्सीन की आपूर्ति हो या गाजा में नागरिकों के मानवीय संकट के समय राहत सामग्री पहुँचाना। हर परिस्थिति में भारत ने वैश्विक कल्याण और मानवता के पक्ष में अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता प्रदर्शित की है। यदि यह शिखर सम्मेलन सफल रहता है, तो यह मध्य पूर्व के इतिहास में शांति स्थापना में एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। यह 2023 के गाज़ा संघर्ष से उपजे संकट को शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में ले जाने का अवसर प्रदान करेगा।

इस प्रक्रिया में भारत की सक्रिय भागीदारी उसे भविष्य की शांति वार्ताओं, पुनर्निर्माण योजनाओं और मानवीय सहायता अभियानों में एक विश्वसनीय एवं जिम्मेदार सहयोगी के रूप में स्थापित कर सकती है। भारत और मिस्र के संबंधों का इतिहास भी इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद दोनों देशों ने मिलकर गैर-संरेखण आंदोलन (Non-Aligned Movement) की नींव रखी थी और औपनिवेशिक शक्तियों के विरुद्ध साझा दृष्टिकोण अपनाया था।

जनवरी 2023 में मिस्र के राष्ट्रपति को भारत ने गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था, वहीं उसी वर्ष जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिस्र की राजकीय यात्रा कर द्विपक्षीय संबंधों को एक नई दिशा दी थी। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने अपने संबंधों को “रणनीतिक साझेदारी” के स्तर तक उन्नत किया। भारत ने अपनी G20 अध्यक्षता के दौरान मिस्र को ‘गेस्ट कंट्री’ के रूप में आमंत्रित किया, जो दोनों देशों के बीच बढ़ती निकटता और आपसी विश्वास का प्रतीक है।

आज भारत और मिस्र ऊर्जा, रक्षा, शिक्षा, पर्यटन और व्यापार जैसे कई क्षेत्रों में घनिष्ठ सहयोग कर रहे हैं। मिस्र को भारत अफ्रीका और अरब जगत से जोड़ने वाले एक प्रमुख साझेदार के रूप में देखता है। वर्तमान में 50 से अधिक भारतीय कंपनियों ने मिस्र में लगभग 4.5 बिलियन डॉलर का निवेश किया है, जो वहाँ के आर्थिक विकास और रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। शर्म अल-शेख शांति शिखर सम्मेलन में कीर्ति वर्धन सिंह को विशेष दूत के रूप में भेजने का भारत का निर्णय केवल एक औपचारिक प्रतिनिधित्व नहीं, बल्कि एक सशक्त कूटनीतिक संदेश है।

यह कदम भारत की मध्य पूर्व नीति, उसकी शांति प्रयासों में बढ़ती सक्रियता और वैश्विक मंच पर सशक्त छवि को दर्शाता है। शर्म अल-शेख सम्मेलन में भारत की भागीदारी न केवल भारत-मिस्र की ऐतिहासिक साझेदारी को और गहराई प्रदान करेगी, बल्कि यह भारत की अंतरराष्ट्रीय भूमिका के पुनर्निर्धारण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम होगी। यह सम्मेलन मध्य पूर्व की शांति प्रक्रिया के साथ-साथ भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा और विश्व शांति में रचनात्मक योगदान के नए अध्याय के रूप में दर्ज हो सकता है।

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