बुरी बातें रामानंद सैनी

बुरी बातें –
अब इसे उम्र का असर कहें या फिर दिमाग की कमजोरी l मेरी उम्र अब 50 वर्ष के ऊपर हो चुकी है l क्योंकि मेरी जन्मतिथि 30 अप्रैल 1971 है l पता नहीं क्यों अब मुझे भूलने की बीमारी जैसी हो गई l उसमें भी सबसे बड़ी बात यह है कि मुझे अच्छी-अच्छी बातें जो देखने और सुनने को मिलती हैं उन्हें मैं बहुत जल्दी भूल जाता हूं l जबकि उसके विपरीत जो बुरी बातें मुझे सुनने को मिलती हैं या कहीं दिखाई देती हैं तो वह मेरे मानस पटल पर अंकित हो जाती है l मेरे साथ किया जाने वाला दुर्व्यवहार मुझे कभी नहीं भूलता है, जबकि सदव्यवहार कुछ ही पलों में भूल जाता हूं l जब मैं बालक था, तब मेरे साथ न जाने कितनी बार मारपीट हुई, अपमान सहना पड़ा, दुत्कारा गया, अन्याय हुआ लेकिन सब कुछ भूल कर आगे बढ़ता रहा l जवानी में भारत भ्रमण के दौरान सैकड़ों बार राह चलते समय अपमानित हुआ, धोखा भी खाया, मार भी खाई, बहुत से कष्ट सहे l लेकिन उन्हें में अगले ही पल या फिर 24 घंटे के अंदर भूल जाता था l जहां कहीं भी मुझे बोलने को मिलता था, सम्मान मिलता था तो उसे मैं याद रखता था l आज मैं हर बात तो भूल जाता हूं लेकिन अपने साथ होने वाले अपमान या बुरी बातों को दिमाग से नहीं निकाल पाता हूं और उनको सोचते सोचते कभी कभी रात भर जागता रहता हूं l अपमान करने या बुरा सोचने वालों को तो पहले मैं भूल जाता था लेकिन अब तो बदले की भावना से काम करने का मन करता है l मुझे चिंता हो जाती है कि आखिर ऐसा क्यों मेरे साथ किया गया l क्या मेरे साथ ही ऐसा होता है या दूसरों के साथ भी l कारण कोई भी हो पिछले दो-तीन सालों से सम्मान और अपमान को लेकर के बड़ा द्वन्द चल रहा है l यह जीवन की गुणवत्ता या सफ़लता नहीं है l जीवन तो उसी का सुख में होता है जो सुख और दुख में एक समान होता है l लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं है, शायद यही मेरे दुख का कारण है l अब मैं इस दुख से निकल पाता हूं कि नहीं यह तो भविष्य के गर्त में है l अब जीवन की गाड़ी तो चल ही रही है, कहां तक चलती है, मैं यह भी नहीं जानता l लेकिन किसी भी हालत में अपमानित नहीं होना चाहता, यही मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल या कमजोरी है l इसी तरह जब मैं किसी को आमंत्रित करता हूं और वह मेरे यहां नहीं आता तो फिर दोबारा उसके वहां जाने का मन नहीं करता l आज से 2 साल पहले तक मैं लखनऊ के सैकड़ों विद्यालय प्रबंधकों के यहां जाता था l लेकिन जब मैंने अपने यहां उनके न आने का अनुभव किया तो मेरा भी मन अब बदले की भावना से उनके यहां न जाने का करता है l क्योंकि जब कोई मेरे यहां नहीं आएगा तो मैं उसके यहां क्यों जाऊं l यह भावना मेरे हृदय में पनपने लगी है l जिंदगी का ज्यादातर समय मोबाइल के व्हाट्सएप और फेसबुक में जा रहा है l न अखबार पढ़ने का मन करता है और न टीवी में समाचार सुनने का, न किताब लिखने का मन करता है और न ही किताब पढ़ने का l हजारों किताबें मेरे पास रखी है l जब भी पुस्तक मेला जाता हूं तो चार – पांच नई पुस्तक खरीद के लाता हूं और कभी-कभी तो वे नई पुस्तक ज्यों की त्यों रखी रहती हैं l मोबाइल के आगे उनको पढ़ने का मन नहीं करता है l यह भी एक बुरी आदत है l वरना मैंने बहुत सी किताबें खरीदी और जब तक उनको पढ़ नहीं डाला तब तक चैन की सांस नहीं ली l आज किताब पढ़ने की बात तो दूर है उन्हें खोलने का भी मन नहीं करता है l क्या होगा मेरे जीवन का भगवान ही जाने l

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *