मूर्ख दिवस
आज हर व्यक्ति अपने को बुद्धिमान और दूसरे को मूर्ख समझता है जोकि गलत बात – रामानंद सैनी
हमारे देश में मूर्ख दिवस एक अप्रैल को मनाया जाता है। दूसरे देशों की जानकारी मुझे नहीं है कि वहाँ कब मनाया जाता है या फिर मनाया ही नहीं जाता है। इस दिन कुछ तथाकथित स्वबुद्धिजीवी लोग अपने परिचितों को ही मूर्ख बनाते हैं। आज तक मेरे साथ कभी कोई ऐसी घटना नहीं हुई थी लेकिन 1 अप्रैल 2023 को मेरे एक घनिष्ट मित्र ने मुझे भी मूर्ख बना कर अपनी पीठ को अपने ही हाथों से थपथपा लिया l
मुझे य़ह जानकर बड़ी हैरानी हुई कि लोग जब अपनों को ही मूर्ख बनाएंगे तो मूर्ख बनने वाले लोग किस पर विश्वास करेंगे क्योंकि मैंने कभी किसी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया। घटना उस समय की है जब मैं अपने विद्यालय के नए सत्र की शुरुआत के पहले दिन असेंबली में बच्चों को संबोधित कर रहा था तभी मेरे पास एक बहुत ही घनिष्ठ मित्र का फोन आता है। मैं अपनी बात को बीच में ही रोक कर फोन को देखता हूं और देखने के बाद उसे उठा लेता हूं यानी रिसीव कर लेता हूं क्योंकि फोन करने वाले मित्र बहुत ही क्लोज थे।
इसलिए उनका फोन उठाने में ही मैंने भलाई समझी, पता नहीं किस काम के लिए उन्होंने फोन किया हो। जब मैंने फोन उठाया तो उन्होंने उधर से अपनी बात कही कि आपके मित्र राम सिंह यादव आपके विद्यालय के बाहर खड़े हैं। आप कहां हैं, उन्हें रिसीव करिए जाकर के चूंकि राम सिंह जी हमारे बहुत ही प्रिय मित्र थे। इस कारण वह कभी भी, किसी भी समय हमारे घर आ जाते थे l कई बार ऐसा हुआ था कि रामसिंह सिंह जी जब विद्यालय के बाहर से निकले तो अचानक मेरे ऑफिस में उपस्थित हो गए।
मैंने सोचा हो सकता है किसी काम से इधर आए हों और मुझसे मिलने के लिए आ गए हों। यह सोचकर मैं अपने संबोधन को बीच में ही रोक कर जब गेट पर पहुंचा तो वहां पर मुझे कोई नहीं मिला। मैंने गार्ड से पूछा क्या कोई अभी यहां आया था तो मेरे विद्यालय के गार्ड ने बताया नहीं सर, यहां तो 1 घंटे से अभी कोई नहीं आया। मैं समझ गया कि हमारे मित्र ने मुझे मूर्ख बना दिया फिर मैंने आया (नौकरानी) से पूछा क्या ऑफिस में कोई आया था तो उसने बताया कोई नहीं आया था। गॉर्ड और आया के इतना बताने पर मैंने मित्र को फिर से फोन लगाया कि आपको कैसे पता था कि राम सिंह जी मेरे यहां आए हैं। इस पर उन्होंने मुझसे कहा कि आज तारीख कौन सी है? मैंने कहा 1 अप्रैल, इस पर उनका जबाव था कि इसीलिए तो मैंने आपको बताया था। इसके बाद उन्होंने मुझसे फिर प्रश्न किया कि आप बताइए आज कौन सा दिन होता है तो मैंने कहा आज तो शनिवार है l लेकिन कौन सा दिन मनाया जाता है। मैंने कहा मुझे नहीं पता।
तब उन्होंने बताया कि आज मूर्ख दिवस है। मैंने कहा धन्य हैं प्रभु कि आपने कम से कम मुझे मूर्ख बनाया तो, मैं तो आपको बहुत बड़ा बुद्धिमान मानता था। आपका बड़ा सम्मान करता था और कभी भी मूर्ख बनाने की बात तो दूर सोचने की बात भी अपने दिमाग में नहीं लाई थी। इसके बाद फोन काट कर फिर बच्चों के बीच में आकर के मैंने अपना संबोधन शुरू किया। मेरे कहने का मतलब यह है कि आज हर व्यक्ति अपने को बुद्धिमान और दूसरे को मूर्ख समझता है लेकिन मेरी समझ में यह उसकी सोच गलत है क्योंकि अगर आप बुद्धिमान हैं तो दूसरे को भी बुद्धिमान समझने में ही भलाई है बाकी आपकी मर्जी किसी को मूर्ख समझो या विद्वान। आपसे कोई कहने थोड़ी न आएगा कि मैं मूर्ख हूं और आप विद्वान। यह आपकी सोच पर निर्भर है कि आप किसी को क्या समझते हैं और कैसे उसके सामने प्रस्तुत होते हैं।