बिलासपुर ,छत्तीसगढ़
पहले के लोग खुद को पानी में निहारते थे। फिर आईने में खुद को देखा करते थे, मगर अब तो हर कोई खुद को मोबाइल में ही निहारता नजर आता है । विज्ञान के नित्य नए अविष्कारों ने जीवन को बहुत सरल के साथ परेशानियाें भरा भी बना दिया है। ऐसी ही एक नई बीमारी का नाम है सेल्फी, खुद ही खुद की फोटो खींचना, तो कभी दूसरो के साथ।
2013 में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया
शब्द
सेल्फी
जिसने सोचने पर मजबूर कर दिया है। कहां गई हमारी संवेदना…कोई मर गया है उसके साथ सेल्फी ,कहीं एक्सीडेंट हो गया कोई परेशानी में है लोग सेल्फी ओर वीडियो बनाते हैं। कुछ लोग आत्महत्या से पहले सेल्फी व वीडियो बनाकर जा रहे हैं।उफ.हिंदुस्तान में सेल्फी से सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं।
सेल्फी ने शारीरिक व मानसिक बीमारी शुरू कर दी है जिसे सेल्फी ऐल्बो कहते हैं। कलाई पर जोर ,मसल्स इंजरी व अकेलेपन का शिकार होना साथ ही फोटो डालने के बाद लाईक कमेन्ट के लिए इंतजार व उसके आधार पर मूड खराब होना लोगों को मानसिक रुप से कमजोर कर रहा है।
सेल्फी की दीवानगी इस कदर है
कि लोग ट्रेन में लटकते, पानी मे कूदते तो कभी बड़ी मंजिलों मे खड़े होकर, खतरनाक जानवरों के संग तो कभी मंदिरों में फोटो खींच आते हैं। हिंदुस्तान में कई मौतें हुई हैं सेल्फी का शौक़ जानलेवा साबित हो रहा है न केवल युवा बल्कि हर उम्र में दीवानगी देखी गई है।
वैसे सेल्फी कुछ लोगों को बहुत खुशी देती है कुछ पल की खुशी स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव डालती है। मगर इतनी दिवानगी अच्छी नही है। आप सेल्फी लें मगर कभी कभी,कहीं कहीं ।
कुछ दिन पूर्व एक मित्र के साथ घूमने गए। वे पूरी टाइम सेल्फी ही लेते रहे, ना वादियों का मजा लिया ना आरती का , न शांति से खड़े होकर प्रकृति के संग रहे, न सुकून से कहीं बैठे। हर थोडी़ देर मे स्टेटस डालते रहे, क्या इतना जरूरी है हर थोड़ी देर मे फीडबैक देखना।
उन्हें देखकर मेरी शांति भंग हो रही थी।
खैर विज्ञान के आविष्कार ने मानव को आगे बढ़ाया है सेल्फी ने ही कुछ लोगों की सुंदरता को बढ़ा दिया है।
इतने सारे ऐप्प हैं कि वह अपने आप को हर रूप में डाल लेते हैं । सेल्फी की वजह से लोग खुद को सुंदर बना रहे हैं जरूरी है मगर इतना नहीं कि ये सब जानलेवा बन जाए और आप भी सेल्फी के दीवाने हैं तो सेल्फी को कम समय दीजिए।
जब आसपास हैं उसका मजा लीजिए , हजारों नहीं केवल एक फोटो ही काफी है यादों को जवा करने के लिए ।