सुनील बाजपेई
कानपुर। यहां जोन के अंतर्गत आने वाले आठ जिलों कानपुर देहात, इटावा,औरैया, कन्नौज, फतेहगढ़ जालौन ,ललितपुर और झांसी में लोकसभा चुनाव सहित बीते सभी त्योहारों की तरह दीपावली का त्योहार भी छिटपुट घटनाओं को छोड़कर शांति और सदभाव पूर्ण तरीके से संपन्न हो गया।
जिसके बाद कानून और शांति व्यवस्था के पक्ष में अपराधी अराजक तत्वों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई फिर शुरू कर दी गई है। जहां तक कानपुर जोन में अब तक के सभी त्योहारों के सफल संपन्न होने का सवाल है। इसमें पूर्ण सफलता इसलिए मिलकर रही, क्योंकि आजकल एडीजी के रूप में कानपुर जोन की कमान योगी सरकार की मंशा के अनुरूप अपराधियों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई और पीड़ितों की सहायता में भी सदैव अव्वल राष्ट्रपति तक के गोल्ड और प्लेटिनम समेत सभी तरह के मेडलों और पुरस्कारों के रुप में अनेक दुर्लभ उपलब्धियों के प्रसंसनीय धारक नोएडा के पहले सफल और सर्वोत्तम पुलिस कमिश्नर भी रहे देश प्रदेश के कर्तव्यनिष्ठ और इमानदार आईपीएस अधिकारियों में से एक वरिष्ठ आई पी एस आलोक सिंह के हाथ में है। उनका अबतक का जुझारू इतिहास यह साबित करता है कि उनकी कर्तव्य के प्रति प्रगाढ़ निष्ठा हर छोटी से छोटी घटना को भी बहुत गम्भीरता से लेकर पूरी निष्पक्षता और पारदर्शिता के साथ दोषियों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाही और पीड़ितों की सहायता में भी कभी पीछे नहीं रही। उनके पास जो भी जाता है। वह निराश नहीं लौटता।
वहीं दूसरी ओर एडीजी आलोक सिंह की इस सराहनीय और अनुकरणीय कार्यशैली के संदर्भ में आध्यात्मिक दृष्टिकोण भी जिस आशय की पुष्टि करता है। उसके मुताबिक अगर कोई पीड़ित सहायता के लिए आता है तो इसका मतलब है कि उसके रूप में ईश्वर ,अल्लाह और गॉड ही हमारी ,आपकी या किसी की भी अधिकार सम्पन्नता, सक्षमता और सेवाभाव के प्रति कर्तव्य निष्ठा और ईमानदारी की परीक्षा लेने ही आया है।
खास बात यह भी कि किसी भी पीड़ित की परेशानी और दुख का निस्तारण संबंधित के प्रति दुआओं का भी सृजक होता है जो कि उसके जीवन में फलित भी अवश्य ही होती हैं। आध्यात्मिक दृष्टिकोण के मुताबिक ऐसा इसलिए क्योंकि किसी के प्रति भी दुआओं और बद्दुआओं के रूप में बोले गए शब्द कभी नष्ट नहीं होते।
….और अगर होते तो हमारी या किसी की भी मोबाइल से बात नहीं होती ,क्योंकि अजर, अमर, अविनाशी अक्षर से शब्द और शब्द से बने वाक्य ही लिखने, पढ़ने और बोलने के रुप में ही इस संसार का संचालन करते हैं। मतलब अगर कुछ लिखा न जाए , पढ़ा ना जाए या कुछ कहा और बोला ना जाए तो इस संसार का संचालन हो ही नहीं सकता। मतलब यदि सक्षम पद वाला कोई भी मौन धारण कर ले तो सारी लोक व्यवस्था ही ठप हो जायेगी।
इसी के साथ साधारण या फिर किसी सक्षम पद के रूप में पुलिस विभाग में सेवारत होना भी संसार के अन्य सभी पदों और विभागों की अपेक्षा सर्वाधिक महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योंकि संसार के संचालन की ईश्वरीय व्यवस्था में जितनी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका पुलिस विभाग की है, उतनी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका संसार के किसी अन्य विभाग अथवा किसी अन्य सर्वोच्च पद धारक की भी कदापि नहीं , पुलिस विभाग में किसी भी पदधारक के रूप में यह महत्वपूर्ण भूमिका संसार में इंसान के जन्म के पहले शुरू होती है और मरने के बाद भी जारी रहती हैl यहां जन्म से पहले मतलब शिकायत पर इस आशय की जांच और विवेचना के रुप में कि पेट में बच्चा किसका है और मृत्यु के बाद भी इस आशय से कि हत्या किसने की है? मतलब जन्म के पहले से लेकर मृत्यु के बाद तक जैसी इतनी बड़ी भूमिका पुलिस के अलावा संसार के किसी भी विभाग या उसके सर्वोच्च पद धारक की भी कदापि नहीं है। यहां तक कि किसी की हत्या के रूप में मृत्यु के बाद व्यक्ति के कर्मों का फल दंड के रूप में, आजीवन कारावास या फांसी के रूप में दिलाने की अधिकार पूर्ण सक्षमता भी पुलिस के अलावा संसार के किसी सर्वोच्च पद धारक की भी कदापि नहीं है।
खास बात यह भी कि हर कर्मचारी और अधिकारी का सारा धर्म ,सारा कर्म , सारी उपलब्धियां, सारी सेवाओं और जीविकोपार्जन का सारा आधार शरीर के लिए ,शरीर के द्वारा और शरीर से ही है।
यही नहीं संसार के संचालन की ईश्वरीय व्यवस्था के तहत जन्म से लेकर मृत्यु तक के बीच के समय यानी जीवन को व्यक्ति के कर्मों के अनुरूप सुख या दुख में बदलने के साथ ही लोकहित के कर्म के लिए रक्षा – सुरक्षा के रूप में जीवन को बचाने और विपरीत आचरण करने पर किसी के भी जीवन को मृत्यु (मुठभेड़) के रूप में समाप्त करने की भी क्षमता , सक्षमता और समर्थता शरीर धारी के रूप में वह रखता है ,जिसे पुलिस कहते हैं। इसी से प्रमाणित होता है कि ईश्वर , अल्लाह और गॉड संसार में व्यक्ति के अच्छे बुरे कर्मों का फल पुलिस विभाग में छोटे से लेकर बड़े पद धारक कर्मयोगियों के रूप में देता भी है।