शहर क़ाज़ी बाँगरमऊ की ईद-उल-अज़हा में कुर्बानी के सिलसिले में एडवाइज़री

रिपोर्ट मोहम्मद इरफ़ान खान

उन्नाव अज़ीज़ भाइयों ईद-उल-अज़हा की आमद-आमद है। इस मौक़े पर आज मैं एक बार फिर आप हज़रात से मुखातिब हूँ। इस बार 10/ज़िल हिज्जा यानी ईद-उल-अज़हा जिसको बक़रीद भी कहते हैं। दिनाँक 17/ जून दिन सोमवार को होगी। ईद-उल-अज़हा के इस मुबारक मौक़े पर कुछ ज़रूरी बातें आपसे अर्ज़ करना चाहूँगा।

(1)> इस साल 9 ज़िल हिज्जा दिन इतवार को सुबह की नमाज़ यानी फ़ज्र के बाद से 13 तारीख दिन जुमेरात असर की नमाज़ तक हर फर्ज़ नमाज़ के बाद तकबीराते तशरीक़ (الله اكبر الله اكبر لا اله الا الله والله اكبر الله اكبر ولله الحمد۔) पढ़ना वाजिब है। मर्द बुलंद आवाज़ से और ख़वातीन आहिस्ता पढ़ें।
(2)> यूँ तो इस माह ज़िल हिज्जा की पहली तारीख़ से 9 तारीख़ तक रोज़ा रखने की बहुत फ़ज़ीलत है लेकिन अगर यह न हो सके तो यौमे अरफ़ा यानी 9 तारीख़ का रोज़ा रखने का एहतिमाम करें।

इस रोज़े की फज़ीलत हदीस शरीफ़ से साबित है।
(3)> बिरादरान-ए-इस्लाम कुर्बानी के सिलसिले में एक बात जो बराबर आप हज़रात को मैं बताता रहता हूँ कि अक्सर कुछ लोगों में गलतफ़हमी रहती है कि वह हर साल अपने नाम से कुर्बानी कराना ज़रूरी नहीं समझते जबकि हर बालिग व आक़िल मर्द औरत साहिबे निसाब यानी जिस शख़्स पर ज़कात देना फ़र्ज़ हो उस पर कुर्बानी कराना भी वाजिब होगा। कुर्बानी न कराने वाला शख़्स गुनाहगार होगा।

हमारे प्यारे आक़ा हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहुअलैही वसल्लम ने ताकीद करते हुए फरमाया कि जिस शख़्स पर कुर्बानी वाजिब हो और वह कुर्बानी न कराए तो ऐसा शख़्स हमारी ईदगाह के क़रीब न आए।

घर में जितने भी शख़्स हों जिन पर ज़कात देना फ़र्ज़ हो उन पर कुर्बानी कराना भी वाजिब है। इस सूरत-ए-हाल में घर के किसी एक शख़्स की तरफ़ से कुर्बानी करना काफ़ी न होगा|

(4)> ईद-उल-अज़हा के 3 दिनों (10/ 11/ 12/) ज़िल हिज्जा में कुर्बानी करना कोई रसम नहीं बल्कि रब्बुल आलमीन की पसंदीदा इबादत है। यह हज़रत इब्राहीम(अलै०) और हज़रत इस्माईल(अलै०) की सुन्नत है। इसका बदल कोई दूसरा नेक अमल नहीं हो सकता इसलिए कुर्बानी के फ़रीज़े को ज़रूर अंजाम दें|
(5)> कुर्बानी के जानवर में बहुत एहतियात से काम लें। कमज़ोर,ज़्यादा दुबला पतला, बीमार या लंगड़ा न हो। और उस जानवर के बदन का कोई हिस्सा कटा पिटा न हो। छोटे जानवर बकरा वगैरह 1 साल और बड़े जानवर 2 साल से कम न हो|
(6)> एक बात पर मैं ख़ुसूसी तवज्जा दिलाना चाहूँगा इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि कुर्बानी आम रास्ते पर या खुलेआम हरगिज़ न करें। कुर्बानी किसी चहार दीवारी या पर्दे में करें। फुज़लात (अवशेष) वगैरह इधर उधर न फेकें बल्कि जमीन में दफ़न कर दें|
(7)> इन जगहों पर सफाई सुथराई का खास एहतमाम करें। और कुर्बानी के वक़्त ज़्यादा भीड़ भाड़ जमा न होने दें।
(8)> कुर्बानी के वक़्त उसका फोटो या मूवी वगैरह क़तई न बनाएं। और न ही उसको सोशल मीडिया पर अपलोड करें। अपने बच्चों और दूसरों से भी इस बात की ताक़ीद कर दें|
(9)> कुर्बानी के गोश्त की तक़्सीम अच्छी तरह पैक करके करें|
क़ुर्बानी के गोश्त को तक़्सीम करने के सिलसिले में एक बात का ध्यान रखें कि ज़्यादा से ज़्यादा ग़रीब व नादार यतीम और बेवाओं का खास ख्याल रखें। जिनके घरों में कुर्बानी न हो सकी हों ऐसे लोगों को क़ुर्बानी का गोश्त तक़्सीम करने में तरजीह दें। यूं तो क़ुर्बानी का गोश्त किसी को भी दिया जा सकता है लेकिन जो शख्स ज़्यादा मुस्तहिक़ हों उनको ही क़ुर्बानी का गोश्त दिया जाए तो बेहतर है|

जिस शख्स के घर में क़ुर्बानी हुई हो उसको गोश्त देने की क्या ज़रूरत है और क़ुर्बानी कराने वाले हज़रात के यहां गोश्त न भेजा जाए तो ज़्यादा बेहतर है|
सभी हज़रात से गुज़ारिश है कि नमाज़ ईद-उल-अज़हा ईदगाह मे ही पढ़ने की कोशिश करें|
ईदगाह बाँगरमऊ में ईद-उल-अज़हा की नमाज़ इन्शाअल्लाह 07:30 बजे होगी|
आप सभी हज़रात से गुज़ारिश है कि ईद-उल-अज़हा का त्योहार सादगी और अल्लाह व उसके रसूल के फ़रमान के मुताबिक़ ही मनाएं| हमारा कोई अमल ऐसा न हो जिससे किसी दूसरे भाई को कोई तकलीफ़ हो|
हमे उम्मीद है कि इन बातों पर ज़रूर से अमल किया जाएगा|
अल्लाह हमें और आपको कहने सुनने से ज़्यादा अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए| (आमीन)

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