मृत्युभोज एक सामाजिक अभिशाप’

जब किसी जानवर का साथी बिछुड़ जाता है तो वह उस दिन चारा नहीं खाता है. जबकि 84 लाख योनियों में श्रेष्ठ मानव, आदमी की मृत्यु पर हलुवा-पूड़ी खाकर शोक मनाने का ढोंग रचता है.इससे बढ़कर निन्दनीय कोई दूसरा कृत्य हो नहीं सकता…

बंद करो मृत्युभोज की कुप्रथा !
ये हर समाज के लिए घातक है।

✍️ आकाश मिश्र (ओम जी)

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