डॉ. जितेन्द्र सिंह ने आज विभिन्न मंत्रालयों के सचिवों के साथ कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की एक उच्च स्तरीय संयुक्त बैठक बुलाई।

नई दिल्ली

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग; तथा कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज विभिन्न मंत्रालयों के सचिवों के साथ कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की एक उच्च स्तरीय संयुक्त बैठक बुलाई। बैठक का उद्देश्य विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के लंबे समय से चल रहे प्रशासनिक और कार्मिक संबंधी मुद्दों को आमने-सामने बैठकर सुलझाना था।

डॉ जितेन्द्र सिंह ने “शोध में आसानी” के लिए “प्रक्रियाओं में आसानी” पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अनुसंधान एवं विकास में आसानी के माध्यम से भारत के नवाचार प्रेरित आर्थिक विकास के लिए प्रशासनिक नियमों का सरलीकरण महत्वपूर्ण है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने प्रक्रियाओं के सरलीकरण पर जोर देते हुए कहा कि वैज्ञानिक संस्थानों को परेशान करने वाली कई समस्याएं भर्ती नियमों, सेवा शर्तों, सेवानिवृत्ति की आयु आदि में विसंगतियों में निहित हैं – जो अक्सर अन्य सिविल सेवकों और संबंधित मंत्रालयों की तुलना में भिन्न होती हैं।

उन्होंने कहा कि यह अस्पष्टता प्रशासनिक संघर्षों को जन्म देती है, खासकर तब जब वैज्ञानिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों, पार्श्व प्रवेश और प्रतिनियुक्ति ढांचे जैसे विभिन्न तरीकों से जुड़े होते हैं। डॉ. जितेंद्र सिंह ने सभी विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभागों में प्रशासनिक तंत्र में अधिक एकरूपता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यदि हमें भारत में अनुसंधान और नवाचार को आसान बनाना है, तो इन प्रशासनिक बाधाओं को दूर किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी, अनुसंधान और नवाचार के साथ मिलकर भारत की आर्थिक वृद्धि के अग्रदूत बन सकते हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के मंत्री के रूप में अपनी दोहरी भूमिका को स्वीकार करते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि वे वैज्ञानिक विभागों के समक्ष आने वाली प्रशासनिक समस्याओं से पूरी तरह अवगत हैं।

उन्होंने प्रणालीगत बाधाओं को दूर करने तथा भविष्य के नीतिगत सुधार और आधार तैयार करने के लिए सभी संबंधित मंत्रालयों को एक मंच पर लाने की पहल की। वे बोले यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बैठक है, क्योंकि यह अंतर-मंत्रालयी सहयोग के लिए माहौल तैयार करती है तथा 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार के समग्र दृष्टिकोण को दर्शाती है। उन्होंने कहा कि रूढ़िवादी तरीकों से हटना होगा, जिसमें समाधान निकालने में बहुत विलम्ब होता है।

इसके बजाय हमें वास्तविक समय में मुद्दों को हल करने के लिए इसी तरह की सफल बैठकों का उपयोग करना चाहिए। डॉ. जितेंद्र सिंह ने प्रशासनिक दक्षता की दिशा में सरकार के व्यापक प्रयासों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हाल ही में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने नागरिकों और वैज्ञानिक समुदाय दोनों के लाभ के लिए 1,600 से अधिक अप्रचलित कानूनों को समाप्त करने और प्रक्रियाओं को सरल बनाने का कार्य किया है। उन्होंने विकसित भारत @ 2047 पहल के माध्यम से दूरदर्शी रूपरेखा प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को श्रेय दिया, जो यह मानते हैं कि प्रशासनिक सुधार राष्ट्रीय विकास का एक महत्वपूर्ण घटक है।

डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि प्रशासनिक प्रक्रियाएं यथासंभव सरल होनी चाहिए। हमें नियम से भूमिका की ओर, कठोरता से तत्परता की ओर तथा देरी से सेवा वितरण की ओर बढ़ना है।

उक्त उच्च स्तरीय बैठक में प्रमुख हितधारकों ने भाग लिया, जिनमें कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की सचिव रचना शाह, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के महानिदेशक और सचिव डॉ. एन. कलैसेल्वी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. अभय करंदीकर, जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. राजेश गोखले, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम. रविचंद्रन, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के अपर सचिव मनोज द्विवेदी, पीएसए कार्यालय के वैज्ञानिक सचिव डॉ. परविंदर मैनी और संबंधित विभागों के अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने बैठक का समापन एक सशक्त संदेश के साथ किया, “भारत का भविष्य विज्ञान की सुगमता और नवाचार की सुगमता पर आधारित है, लेकिन इसकी नींव प्रशासनिक स्पष्टता, सरलता और तालमेल पर आधारित होनी चाहिए। आज की बैठक उस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”

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