पुलिस विभाग : जन- जन का जो दुःख मिटाता, वह निज से क्यों मुक्ति ना पाता, इंस्पेक्टर देवेंद्र दुबे को विदाई

गोविंद नगर में इंस्पेक्टर माधव प्रसाद तिवारी की अगुवाई में आगरा स्थानांतरित इंस्पेक्टर देवेंद्र कुमार दुबे को भावभीनी विदाई

सुनील बाजपेई
कानपुर। यहां लगभग 6 माह के सफल कार्यकाल के बाद आगरा स्थानांतरण होने पर इंस्पेक्टर देवेंद्र कुमार दुबे को थाना गोविंद नगर में बहुत भावभीनी बिदाई दी। इस बीच उन्होंने कानून और शांति व्यवस्था के पक्ष में पुलिस विभाग में सकुशल नौकरी के गुरु मंत्र भी बताए।
स्वरूप नगर , फजलगंज , कल्याणपुर के बाद गोविंद नगर में भी लगभग 6 माह के सफल कार्यकाल के बाद चुनाव आयोग के निर्देश पर पुलिस कमिश्नरेट आगरा स्थानांतरित किए गए इंस्पेक्टर देवेंद्र कुमार दुबे को यह भावभीनी विदाई कार्यवाहक थाना प्रभारी इंस्पेक्टर माधव प्रसाद तिवारी की अगुवाई में गोविंद नगर के वरिष्ठ उप निरीक्षक वीरेन्द्र कुमार सिंह ,सब इंस्पेक्टर भूटान सिंह , चौकी प्रभारी गीता सिंह, अरुण कुमार राठी, सतपाल सिंह,अनलेश सिंह, सौरभ सिंह सब इंस्पेक्टर प्रवीण दिलवालिया, विनोद कुमार प्रथम, गौरव कुमार, पवन कुमार, अंकुर मलिक, कांस्टेबल सुधीर कुमार, विनय पाण्डेय ,विकास पंडित, ज्ञानेन्द्र चौरसिया , हेड कांस्टेबल मनोज कुमार और संजय वर्मा आदि ने दी।

जहां तक किसी के भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण का सवाल है। इसका भी अपना आध्यात्मिक पक्ष है, जिसके मुताबिक स्थानांतरण के रूप में आपके कदम धरती के उस स्थान पर भी पड़ते हैं ,जहां जन्म के बाद पहले कभी नहीं पड़े होते और उन लोगों से भी मुलाकात होती है ,जिनसे पहले कभी नहीं मिले होते। कहने का आशय यह कि जैसे जन्म तय है। मृत्यु तय है। ठीक वैसे ही जन्म और मृत्यु के बीच वाले काल खण्ड यानी जीवन समय के अनुरूप यह भी तय है कि कौन , कब , कहां पर ,कब तक ,किसके साथ और संसार के संचालन की ईश्वरीय व्यवस्था में अपनी क्या भूमिका अदा करेगा।

इस आध्यात्मिक दृष्टिकोण मुताबिक अगर कोई पीड़ित और दुखी व्यक्ति सहायता के लिए आता है तो इसका मतलब है कि उसके रूप में परमेश्वर ही हमारी ,आपकी या किसी की भी सक्षमता और संपन्नता की परीक्षा लेने आया है|
और इसमें आपके आगे का जीवन मार्ग सुखमय होगा या दुखमय इसका भी निर्णय उस पीड़ित और दुखी व्यक्ति की दुआएं या बददुआएं करती हैं ,जो आपके पास सहायता के लिए आता है, क्योंकि किसी के प्रति भी दुआओं और बददुआओं के रूप में बोले गए शब्द कभी नष्ट नहीं होते। और अगर होते तो हमारी या किसी की भी मोबाइल से बात नहीं होती और ना ही वायरलेस जैसे यंत्र इसका प्रमाण बनते।

क्योंकि अजर, अमर, अविनाशी अक्षर से शब्द और शब्द से बने वाक्य ही लिखने, पढ़ने और बोलने के रुप में ही इस संसार का संचालन करते हैं। मतलब अगर कुछ लिखा न जाए , पढ़ा ना जाए या आदेशात्मक रूप में कुछ कहा या बोला ना जाए तो इस संसार का संचालन हो ही नहीं सकता। इसी संदर्भ में अगर छोटे या बड़े पद के रूप में किसी भी व्यक्ति के पुलिस विभाग में सेवारत होने का सवाल है तो किसी भी साधारण या फिर किसी सक्षम पद के रूप में पुलिस विभाग में सेवारत होना संसार के अन्य सभी पदों और विभागों की अपेक्षा सर्वाधिक महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योंकि संसार के संचालन की ईश्वरीय व्यवस्था में जितनी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका पुलिस विभाग की है, उतनी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका संसार के किसी अन्य विभाग अथवा किसी अन्य सर्वोच्च पद धारक की भी कदापि नहीं ,क्योंकि किसी भी पुलिस कर्मचारी और अधिकारी के रूप में यह महत्वपूर्ण भूमिका संसार में इंसान के जन्म के पहले शुरू होती है और मरने के बाद भी जारी रहती हैl यहां जन्म से पहले मतलब शिकायत पर इस आशय की जांच और विवेचना के रुप में कि पेट में बच्चा किसका है और मृत्यु के बाद भी इस आशय से कि हत्या किसने की है? मतलब इतनी बड़ी भूमिका पुलिस के अलावा संसार के किसी भी विभाग या उसके सर्वोच्च पद धारक की भी कदापि नहीं है।

यही नहीं दूसरों के सुख, चैन और शांति के लिए अपने सुख – चैन को सेवानिवृत होने तक कुर्बान करते रहने वाले देश और समाज के हित में वास्तविक कर्मयोगी पुलिस वालों से किसी का, किसी भी रूप में संबंध और उसका सांसारिक कर्म कर्तव्य भी उसके पूर्व जन्म के कर्मों और संस्कारों के अनुरूप परमेश्वर द्वारा पूर्व नियोजित ही होता है। मतलब संसार में
जो आपको करना है। वह आप कर रहे हैं और जो मुझे करना है। वह मैं कर रहा हूं। लेकिन इसमें भी पूर्व जन्म के कर्म और संस्कारों के अनुरूप अधिकार पूर्ण कर्म सक्षमता भी अलग-अलग ही होती है। वह भी पुलिस विभाग में होने के नाते किसी की इतनी बड़ी कि जितनी बड़ी संसार के अन्य किसी विभाग या सर्वोच्च पद धारक की भी कदापि नहीं। यहां तक कि किसी की हत्या के रूप में मृत्यु के बाद व्यक्ति के कर्मों का फल दंड के रूप में, आजीवन कारावास या फांसी के रूप में दिलाने की अधिकार पूर्ण सक्षमता भी पुलिस के अलावा संसार के किसी सर्वोच्च पद धारक की भी कदापि नहीं होती। इसी से प्रमाणित होता है कि ईश्वर , अल्लाह और गॉड संसार में व्यक्ति के अच्छे बुरे कर्मों का फल पुलिस विभाग में छोटे से लेकर बड़े पद धारक कर्म योगियों के रूप में देता भी है और निहित स्वार्थ पूर्ति के लिए किए गए विपरीत आचरण पर अन्य सक्षम के माध्यम से खुद पाता भी है। इसका संबंध चाहे किसी के सुख – दुख से हो या फिर जीवन अथवा मृत्यु से। यहां तक कि अगर कोई किसी बड़े से बड़े पद का धारक भी है तो उसके मूल में पुलिस वालों का ही सेवा कर्म है।

यह बात दीगर है कि जो पुलिस वाले के रूप में दूसरों की अंत : पीड़ा या उनका दुख , दर्द दूर करने में दिन-रात लगे रहते हैं। उनमें से अधिकांश का उनका स्वयं का दुख दर्द ,अंत : पीड़ा या फिर समस्याएं रिटायर्ड होने तक पीछा नहीं छोड़तीं। जिसके बारे में संक्षेप में केवल यही कहा जा सकता है कि – निज दुख को जो भूल कर , पर को कष्ट मिटाय। नींद, नारि ,भोजन तजे , वही पुलिस बन जाय।

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