विश्व फलक पर हिंदी

विश्व भाषा की सफर में बढ़ती हिन्दी

कई देश ने अपनी अपनी भाषा में ही ज्ञान विज्ञान की पूर्णता प्राप्त की है। अंग्रेजी भाषा जिन पर बुरी तरह हावी हो चुकी है। वही यह तर्क देते हैं कि बिना अंग्रेजी के भारत पिछड़ जाएगा। भारत में केवल 2 प्रतिषत लोग ही अंग्रेजी जानते हैं। यदि जापान और जर्मनी जैसे देश अंग्रेजी के बिना अपनी-अपनी भाषाओं के माध्यम से विज्ञान की नवीनतम जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, तो हम अपनी हिंदी के जरिए ऐसा क्यों नहीं कर सकते? विश्व में करीब 1 अरब से ज्यादा लोग न सिर्फ हिंदी बोल सकते हैं बल्कि इसे लिखते और समझते भी हैं।

1815 ई में जर्मनी के स्वतंत्र होने पर बिस्मार्क ने आदेश दिया था कि 1 वर्ष के भीतर सभी कामकाज जर्मन भाषा में होगा, जो नहीं करेंगे उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाएगा। परिणाम स्वरूप 1 वर्ष के भीतर जर्मन भाषा राष्ट्रभाषा बन गई परंतु भारत में अंग्रेजी के भक्तों के कारण हिन्दी राष्ट्रभाषा पूर्णतया नहीं बन पाई। अंग्रेजी माध्यम से शिक्षित लोग अंग्रेजी भाषा में व्यवहार करने को गर्व समझते हैं।

भारत में न्यायालयों का कार्य भी अंग्रेजी में होने के कारण वकीलों, न्यायाधीशों को अंग्रेजी में ही व्यवहार करना पड़ता है जिससे अंग्रेजी के प्रचार-प्रसार को बल मिलता है। इतनाही ही नही, जब हम हिन्दी भाषी प्रदेशों में सड़कों के संकेत, दुकानों के नामपट्टी या कई बार शिक्षित हिंदी भाषी की विवाह, शादी समारोह के निमंत्रण पत्र अंग्रेजी भाषा में छपते हैं, तो यह बहुत शर्मनाक लगता है।

परिणाम स्वरूप हिन्दी उपेक्षित होती है। उपरोक्त सभी समस्याएं हिन्दी को पूर्णतया राष्ट्रभाषा बनने में रुकावट पैदा करती रही है, जिसके विरोध में गांधी जी ने स्वयं कहा था कि राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है।
आज जर्मन, जापान, चीन, अमेरिका आदि ने अंग्रेजी को नकार कर अपनी अपनी भाषा में अपने-अपने देशों की प्रगति हर क्षेत्र में कर ली है तो हम हिंदुस्तानी क्यों नहीं कर सकते? वास्तविकता यह है कि हिन्दी सबसे प्रभावी संचार माध्यम होनी चाहिए।

भारतीय सभ्यता संस्कृति को जानने के लिए विदेशी लोग भी हिंदी सीख रहे हैं। हिन्दी भाषा सीखना अन्य की तुलना में आसान है। राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाना समय की मांग है। यही समय है, सही समय है, अब हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित कर दिया जाए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आने वाले दिनों में हिंदी भाषा, विश्व भाषा के रूप में सुशोभित होगी।
हिंदी को षास्त्रीय भाषा और राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाए

विदेषों में हिंदी का विकास उत्साहवर्धक
विश्व भाषा की सफर में बढ़ती हिन्दी
विश्व फलक पर हिंदी

कई देश ने अपनी अपनी भाषा में ही ज्ञान विज्ञान की पूर्णता प्राप्त की है। अंग्रेजी भाषा जिन पर बुरी तरह हावी हो चुकी है। वही यह तर्क देते हैं कि बिना अंग्रेजी के भारत पिछड़ जाएगा। भारत में केवल 2 प्रतिषत लोग ही अंग्रेजी जानते हैं। यदि जापान और जर्मनी जैसे देश अंग्रेजी के बिना अपनी-अपनी भाषाओं के माध्यम से विज्ञान की नवीनतम जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, तो हम अपनी हिंदी के जरिए ऐसा क्यों नहीं कर सकते? विश्व में करीब 1 अरब से ज्यादा लोग न सिर्फ हिंदी बोल सकते हैं बल्कि इसे लिखते और समझते भी हैं।

1815 ई में जर्मनी के स्वतंत्र होने पर बिस्मार्क ने आदेश दिया था कि 1 वर्ष के भीतर सभी कामकाज जर्मन भाषा में होगा, जो नहीं करेंगे उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाएगा। परिणाम स्वरूप 1 वर्ष के भीतर जर्मन भाषा राष्ट्रभाषा बन गई परंतु भारत में अंग्रेजी के भक्तों के कारण हिन्दी राष्ट्रभाषा पूर्णतया नहीं बन पाई। अंग्रेजी माध्यम से शिक्षित लोग अंग्रेजी भाषा में व्यवहार करने को गर्व समझते हैं। भारत में न्यायालयों का कार्य भी अंग्रेजी में होने के कारण वकीलों, न्यायाधीशों को अंग्रेजी में ही व्यवहार करना पड़ता है जिससे अंग्रेजी के प्रचार-प्रसार को बल मिलता है।

इतनाही ही नही, जब हम हिन्दी भाषी प्रदेशों में सड़कों के संकेत, दुकानों के नामपट्टी या कई बार शिक्षित हिंदी भाषी की विवाह, शादी समारोह के निमंत्रण पत्र अंग्रेजी भाषा में छपते हैं, तो यह बहुत शर्मनाक लगता है। परिणाम स्वरूप हिन्दी उपेक्षित होती है। उपरोक्त सभी समस्याएं हिन्दी को पूर्णतया राष्ट्रभाषा बनने में रुकावट पैदा करती रही है, जिसके विरोध में गांधी जी ने स्वयं कहा था कि राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है।

आज जर्मन, जापान, चीन, अमेरिका आदि ने अंग्रेजी को नकार कर अपनी अपनी भाषा में अपने-अपने देशों की प्रगति हर क्षेत्र में कर ली है तो हम हिंदुस्तानी क्यों नहीं कर सकते? वास्तविकता यह है कि हिन्दी सबसे प्रभावी संचार माध्यम होनी चाहिए। भारतीय सभ्यता संस्कृति को जानने के लिए विदेशी लोग भी हिंदी सीख रहे हैं। हिन्दी भाषा सीखना अन्य की तुलना में आसान है। राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाना समय की मांग है। यही समय है, सही समय है, अब हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित कर दिया जाए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आने वाले दिनों में हिंदी भाषा, विश्व भाषा के रूप में सुशोभित होगी।

हिंदी समझने और बोलने वालों की संख्या हो या इंटरनेट पर हिंदी के विस्तार के आंकड़े, वे सभी उत्साहवर्धक है। हिंदी एक अरब 30 करोड़ लोगों द्वारा पढ़ी, लिखी, समझी या बोली जाती है। 11 राज्यों की मातृभाषा है। कोई चार प्रक्रियाओं में से कोई न कोई करता है। आज दुनिया भर में 150 से ज्यादा देशों के 200 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। अमेरिका के 30 से ज्यादा विश्वविद्यालयों व शैक्षणिक संस्थाओं में हिंदी की पढ़ाई हो रही है।

इसी तरह जर्मनी के 15 संस्थानों में हिंदी भाषा और साहित्य का अध्ययन हो रहा है। ब्रिटेन की लंदन, कैंब्रिज और यार्क यूनिवर्सिटी में भी हिंदी पढ़ाई जाती है। चीन, जापान, हंगरी, रूस और देशों में भी हिंदी की पढ़ाई हो रही है। यही नहीं भारत की बेहतर जानकारी के लिए दुनिया भर में करीब सवा सौ संस्थानों में हिंदी का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है। विश्व में करीब 1 अरब से ज्यादा लोग न सिर्फ हिंदी बोल सकते हैं बल्कि इसे लिख और समझ भी रहे हैं।

विश्व में हिंदी तीसरे स्थान पर भले ही हो परंतु नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान मलेशिया ब्रिटेन अमेरिका जैसे देशों में हिंदी के जरिए भारतीयता भी विकसित हो रही है। इसी तरह फिजी, मॉरीशस, गुयाना, सूरीनाम में हिंदी को अल्पसंख्यक भाषा का दर्जा हासिल हो चुका है। जापान, कोरिया, चीन, रूस, इंग्लैंड, इटली, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, अमेरिका, मेक्सिको आदि अनेक देशों में हिंदी भाषा और साहित्य पर शोध कार्य भी हो रहा है।

मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका, जुआना तथा सूरीनाम तो ऐसे देश है, जहां भारत मूल की हिंदी प्रदेशों से ही लोग बसे हैं। अतः हम यह नहीं कहते की अंग्रेजी नहीं बोलना चाहिए या अंग्रेजी माध्यम में नहीं पढ़ना चाहिए। आपको जो माध्यम सही लगे उसे पढ़े, लेकिन हिन्दी का भी सम्मान करें, क्योंकि हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है। किसी भी भाषा के 1500 वर्ष पूर्ण होने पर क्लासिकल भाषा का संज्ञा प्रदान किया जाता है। हिंदी 1500 वर्षों की भाषा है। राष्ट्रभाषा बनने के लिए सर्व सहमति की आवश्यकता नहीं, बहुमत की आवश्यकता है। अब हिंदी को भी क्लासिकल भाषा व राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए।

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