◾पांच आदिवासी सीटों पर मिली हार, समीक्षा से क्यों मुंह मोड़ रही है भाजपा।
◾भाजपा का वोट शेयर 2019 के 51.6 प्रतिशत से घटकर 2024 लोकसभा चुनाव में 44.60 प्रतिशत रह गया है।
(शाहनवाज़ हसन)
झारखंड में लोकसभा चुनाव से पूर्व भाजपा यह दावा कर रही थी कि 14 लोकसभा सीटों में से 13 पर कमल का खिलना तय है।लेकिन जब नतीजे आए तो वह खूंटी, सिंहभूम, लोहरदगा, दुमका और राजमहल की पांच आदिवासी सीटें हार गई।
अगर यह कहा जाए कि भाजपा की जनजातीय क्षेत्रों में पकड़ कमज़ोर पड़ गई है तो गलत नहीं होगा।
पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की भाजपा में वापसी के उपरांत भाजपा आदिवासी मूलवासी क्षेत्रों में अपना जनाधार बढ़ाने में पूरी तरह विफल रही।
झारखंड में भाजपा का वोट शेयर 2019 लोकसाभा चुनाव में जहां 51.6 प्रतिशत था वह घटकर 2024 लोकसभा चुनाव में 44.60 प्रतिशत तक पहुंच गया। झारखंड से ही भाजपा एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव आते हैं, वे भी लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र से बड़े अंतर से चुनाव हार गए।
झारखण्ड में 2019 के बाद से सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए हैं, जिनमें से दुमका, मधुपुर, डुमरी और गांडेय पर भाजपा को सत्ता पक्ष के हाथों करारी शिकस्त झेलनी पड़ी है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी अपने गृह जिला में भी मात खा गए हैं। झामुमो पर भ्रष्टाचार को लेकर बाबूलाल मरांडी लगातार हमलावर रहे उसके बाबजूद लोकसभा चुनाव एवं विधानसभा उपचुनाव में जनता ने उन्हें पूरी तरह से नकार दिया।गांडेय विधानसभा उपचुनाव में जेल में बंद पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने भाजपा उम्मीदवार को 27 हज़ार से अधिक मतों से हराया।
कल्पना सोरेन की जीत ने यह संदेश देने का कार्य किया है कि झारखंड में आदिवासियों के बीच बाबूलाल मरांडी अपनी पकड़ खो चुके हैं।लोकसभा चुनाव में सभी जनजातीय सीट हारने के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व क्षमता पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं। यदि विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा संगठन में फेरबदल नहीं करती है
और जनता की पसंद को नकारते हुए बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में ही विधानसभा चुनाव लड़ती है तो फ़िर झारखण्ड में भाजपा की वापसी एक ख्वाब बन कर रह जाएगी। पांच आदिवासी सीटों पर भाजपा की हार की समीक्षा से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व नजरें चुरा रहा है।
हालंकि भाजपा के वरिष्ठ विधायक सीपी सिंह ने बहुत ही बेबाकी और साफगोई के साथ यह कहा है कि यदि जीत का श्रेय टीम लीडर को होता है तो हार की जिम्मेदारी भी उसी की होती है। भाजपा भी अब कांग्रेस की राह पर चल रही है, जहां आपसी मतभेद गुटबाजी अपने चरम पर है।
उपर से सब कुछ ठीक ठाक नजर आ रहा है पर जब लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार की समीक्षा करने पर दुमका और खूंटी लोकसभा चुनाव के परिणाम यह बताते हैं कि भाजपा झारखंड में पार्टी विद डिफरेंस नहीं रह गई है।