//एक गीत//
डॉ.रेणु शर्मा
वैशाली, बिहार
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बस यूँ ही………..
अपना कोई नहीं है दिखता,सब मतलब में लीन।
बताओ किसपर करें यकीन?।।
सब कहते हैं मैं तेरा हूँ ,किसको अपना हम माने।
कौन है झूठा कौन है सच्चा , किसको कैसे पहचाने।।
फितरत सबकी मिलती -जुलती ,सबकी एक जमीन।
बताओ किसपर करें यकीन?।।
तन-मन-धन है जिसको सौंपा , करते केवल हैं वादे।
विश्वासी विषधर बन बैठा , कुत्सित दिखते इरादे।।
खूब भरोसा देते पहले , फिर करते गमगीन।
बताओ किसपर करें यकीन ?।।
रंग बदलते ऐसे – जैसे , गिरगिट भी खाती मातें।
किसका लें सहयोग यहाँ पर ,झूठे सब रिश्ते-नाते।।
कोई सुनता नहीं किसी का , खुद में सब तल्लीन।
बताओ किसपर करें यकीन?।।
घर – घर में ही चलता – रहता ,राजनीति का है खेला।
भीतर से सब अलग-थलग हैं ,बाहर दिखता है मेला।।
सज्जन बनकर बीच में रहता,जुर्म करे संगीन।
बताओ किसपर करें यकीन ?।।
रहे झुलसते, जलन स्वार्थ में , लगते जैसे अंगारे।
मौका मिलते वार हैं करते, दिखते दिन में है तारे।।
प्रभु चरणों में ध्यान लगायें , रहें उन्हीं में लीन।
बताओ किसपर करें यकीन ?।।
करें प्रभु पर हम सदा यकीन?।।