मीरा बाई पर जीवनी परख उपन्यास प्रेम दीवानी

डॉ. राजेन्द्र मोहन भटनागर
प्रेम का एक रंग होता है। वह ऐसा होता है कि छूटे छुटाये नहीं छूटता। वह प्रेममय होता है। मीरा ऐसे ही प्रेम की दीवानी थी। तभी वह प्रेम दीवानी कहलाई। सच तो यह है कि मीरा ने अपने को पूर्व में पुजारिन ही प्रेम घोषित कर दिया था। सच यह भी है कि मीरा श्रीकृष्ण में ऐसी डूब गई थी कि अपने को ही भूल कर उसकी ही हो गई थी। श्रीकृष्ण से जो प्रेम कर बैठे, वह किसी अन्य का नहीं रहता। वह उनके प्रेम में लीन होकर उनमें ही समा जाता है।

श्रीकृष्ण हैं ही प्रेम के अवतार। उनका राधा और गोपियों का प्रेम अमर हो गया। वैसा ही उनका मीरा प्रेम के साथ हुआ। श्रीकृष्ण की प्रेम लीलाएं बहुचर्चित हैं। श्रीकृष्ण हैं ही लीलाधारी। उनकी लीलाओं में रस-रंग हैं, विविधताएं के इन्द्रधनुष हैं और समर्पण की अन्तर्कथाएं हैं। मीरा में वे ही अवतरित हुई हैं। श्रीकृष्ण सामाजिकों से जुड़ने, उनमें रमने और उनको अपना बनाने में देर नहीं लगाते। इसी का कारण है कि वह बहुचर्चित हैं।

सबमें रमण करते हैं। मीरा उनके ही मार्ग की अनुगामिनी है। श्रीकृष्ण की सामाजिकता में सम्मोहन है, अन्तःकरण की अनुभूतियों की विविधताएं और परस्परता की घनिष्ठता का आकर्षण हैं। वही सब मीरा में है।

इस बार डायमण्ड बुक्स आपके समक्ष लेकर आया है मीराबाई पर जीवनीपरक उपन्यास प्रेम दिवानी जिसे लिख है जाने माने साहित्यकार डॉ. राजेन्द्र मोहन भटनागर।
डॉ. राजेन्द्र मोहन भटनागर के अनुसार मीरा जहाँ-जहाँ गईं, वे स्थान तीर्थ बन गए और मैंने उन स्थानों की एक बार नहीं अनेक बार यात्राएँ कीं। वहाँ की भूमि का चप्पा-चप्पा घूमा। वहाँ के निवासियों से मिला। वहाँ उपलब्ध बहियों को देखा। मीरा के बारे में जानकारी प्राप्त की।

अनेक जगह मीरा के बारे में गहरी खामोशी मिली। गुजरात में चोरवाड़, सोमनाथ, काठियावाड़ और द्वारिका में भी मीरा के बारे में कोई विशेष बात सामने नहीं आई। द्वारिका में मैंने द्वारकाधीश के दोनों मन्दिरों के दर्शन किए। वहाँ मीरा की अनुभूति मुझे मिली। एक रात मैं मन्दिर में ही रह गया। वह पूनम की रात थी। समुद्र बेहद मचल रहा था।

उसकी तरंगंे ज्वार-भाटे का निमन्त्रण दे रही थीं। फिर भी, मुझे अद्भुत सन्नाटा घेरा हुआ था। मैं चकित था और एक बार यह सोच कर डर गया था कि मीरा ने आत्महत्या तो नहीं की थी। मीरा आत्महत्या क्यों करती? पर मैं ऐसा जरूर सोच गया। आत्महत्या की सम्भावना की जा सकती थी। मीरा ने जिस समाज में जीया था, वह समाज नारी स्वतन्त्रता के प्रति और विशेष रूप से राजघराने की विधवा युवती के प्रति, कतई अनुकूल नहीं था। मीरा का वृन्दावन छोड़ कर द्वारिका आना अकारण नहीं था।

मीरा एकदम अकेली पड़ गई थी। कौन था उसका? वह किस-किस से लड़ती? उसे लड़ना आता नहीं था। वह तो प्रभु चरणों में अपने आपको समर्पित करके निश्चित हो गई थी। उसके प्रभु जैसे रखेंगे, वह रहेगी। फिर भी, व्यक्ति के संघर्ष झेलने की एक सीमा है। मैं मीरा के लिए आत्महत्या की सोच कर पाप नहीं कर रहा हूँ।

कारण, किसी व्यक्ति का आत्महत्या तक पहुँचने के लिए तत्कालीन समाज जिम्मेदार होता है। यद्यपि मैंने मीरा को समुद्र स्थित द्वारिकाधीश के मन्दिर में प्रविष्ट हो जाने दिया है तथापि उसके बाद क्या हुआ, वह अनुमान-अनुभव और कल्पना के लिए छोड़ दिया। इसके अतिरिक्त मेरे सामने कोई उपाय नहीं था और मैं किसी भी निर्णय लेने की स्थिति में स्वयं को नहीं पाता था। फिर, मेरे लिए मेरे पाठक भी तो कृतिकार हैं, उन्हें भला मैं सृजन के सुख से कैसे वंचित रह जाने देता। समर्पण का अपना सुख है, अपना आनन्द है। पारवती इसका सबसे बड़ा साक्ष्य है।

लेखक का जीवन परिचय
सुविख्यात कथाकार डॉ. राजेन्द्र मोहन भटनागर का जन्म 2 मई, 1938 अबाला (हरियाणा) में हुआ और शिक्षा सेंट जोंस कॉलेज, आगरा और बीकानेर में।
शिक्षा ः एम.ए. पी.एच.डी. डी.लिट् आचार्य।
साहित्य ः चालीस से ऊपर उपन्यास। उनमें रेखांकित और चर्चित हुए- दिल्ली चलो, सूरश्याम, महाबानो, नीले घोड़े का सवार, राज राजेश्वर, प्रेम दीवानी, सिद्ध पुरुष, रिवोल्ट, परिधि, न गोपी न राधा, जोगिन, दहशत, श्यामप्रिया, गन्ना बेगम, सर्वोदय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, वाग्देवी, युगपुरुष अंबेडकर, महात्मा, अन्तहीन युद्ध, अंतिम सत्याग्राही, शुभप्रभात, वसुध, विकल्प, मोनालिसा प्रभृति महाबानो प्रभृति।
नाटक संध्या का चोर, सूर्याणी, ताम्रपत्र, रक्त ध्वज, माटी कहे कुम्हार से, दुरभिसंधि, महाप्रयाण, नायिका, गंंूगा गवाह, मीरा, सारथिपुत्र, भोरमदेव प्रभृति
कथा गौरैया, चाणक्य की हार, लताए, मांग का सिंदूर आदि।
अनेक उपन्यास धरावाहिक प्रकाशित और आकाशवाणी से प्रसारित। अनेक कृतियों पर शोध कार्य। अनेक उपन्यास और कहानियां कन्नड़, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं में अनूदित। राजस्थान साहित्य अकादमी का सर्वोच्च मीरा पुरस्कार के साथ शिखर सम्मान विशिष्ट साहित्यकार के रूप में, नाहर सम्मान पुरस्कार, घनश्यामदास सर्राफ सर्वोत्तम साहित्य पुरस्कार आदि अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार।

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