भोक्ता समाज के तर्ज़ पर घासी समाज को अविलंब आदिवासी का दर्जा दे नही तो केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ आन्दोलन होगा – विजय शंकर नायक

उपरोक्त बाते आज आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केन्द्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व विधायक प्रत्याशी विजय शंकर नायक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री झारखण्ड, केंद्रीय जनजाति मंत्री को ईमेल भेजकर उक्त बातें कही l इन्होंने यह पत्र के माध्यम से यह भी बताया कि झारखंड राज्य के घासी समाज वर्तमान में अनुसूचित जाति झारखंड के पुराने वासिंदो में से एक है l

घासी समाज पूर्व से ही जनजातीय समाज रहा है इसकी भी रूढ़ीगत अपनी परंपरा संस्कार एवं संस्कृति रही है l आज झारखंड में आर्थिक राजनीतिक सामाजिक शैक्षणिक रूप से सबसे कमजोर एवं अंतिम पायदान पर बैठा इस समाज की गिनती आज हो रही है l महोदय इस संदर्भ में आप सभी माननीय का स्मरण करना चाहूंगा की The Superintendent of census Operations,Bengal (Apperndex VIII) जब हो रहा था तब H.C Streatfeild,Eso,Deputy Commissioner, Ranchi ने पत्र संख्या 265 C dated,Ranchi the 1st October 1901 को The Superintendent of Census Operations Bengal के पत्र संख्या-184 T dated- 25 th may last 1902के जवाब में जनजातिय समाज की एक सूची बना कर भेजा था जिसमें 43 जनजातिय लोगों को चिन्हित किया गया था जिसमें क्रमांक- 16 नंबर पर मे (घासी)को जनजातीय की सूची में चिन्हित किया गया था जिसकी प्रति छाया प्रति संलग्न किया जा रहा है l
*उसके बाद भारत सरकार के गजट अधिसूचना गृह विभाग नंबर 18 शिमला दिनांक 2 में 1913 प्राधिकार द्वारा उस मॉरिस भारत सरकार के सचिव (गृह) के हस्ताक्षर से प्रकाशित किया जो अपने पत्र संख्या 550 में या अधिसूचित किया गया की जबकि सामान्य से भिन्न वे जनजाति जो मुंडा उरांव संथाल हो भूमि खड़िया घासी के नाम से जाने जाते हैं

उनके अपने प्राथमिक उत्तराधिकार एवं विरासत के रुढ़ीगत प्रथा कायम है जो कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1865 के प्रावधानों से सर्वथा असंगत है और इन जनजातियों के लोगों पर उक्त अधिनियम के प्रावधानों को लागू करना व्यर्थ है।

भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1865 के लगभग के भाग 332 में दिए गए शक्तियों का प्रयोग करते हुए गवर्नर जनरल काउंसिल में उक्त सभी जनजातीय जनजाति जो मुंडा उरांव संथाल हो भूमि खड़िया घासी के नाम से जाने जाते हैं व बिहार एवं उड़ीसा प्रांत के मध्य निवासित हैं को इस अधिनियम के प्रावधानों की कार्रवाई की भूतलक्षी प्रभाव के साथ बाहर रखने की छूट देने में संतुष्ट हैं जिसकी छाया प्रति संलग्न किया जा रहा है ।

विजय शंकर नायक ने आगे कहा कि आजादी के बाद 1950 के अनुसूचित जाति / जनजाति के अधिसूचना में बिना कारण बताएं घासी जाति को जनजाति की सूची से निकलकर अनुसूचित जाति बना दिया गया जो इस समाज वर्ग के लोगों के साथ अन्याय है ।

अतः आप सभी माननीय महोदय से कतारबद्ध अनुरोध प्रार्थना विनती होगा कि जिस तरह भोक्ता पूर्व में अनुसूचित जाति वर्तमान में जनजाति का दर्जा दिया गया है उसी के तर्ज पर आर्थिक राजनीतिक सामाजिक शैक्षणिक रूप से अंतिम पायदान में बैठे झारखंड के सबसे कमजोर समाज घासी को झारखंड में पुनः अनुसूचित जनजाति की सूची में रखने की दिशा में अग्रतार कार्रवाई की जाए अन्यथा यह समाज अपने ऊपर हुए इस महा अन्याय के खिलाफ तथा पुनः अनुसूचित जनजाति की सूची में आने के लिए संघर्ष के साथ-साथ आंदोलन करने को बाध्य होगा जिसके जिम्मेवारी केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार पर होगी

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