उत्तर प्रदेश में स्कूलों के विलय का निर्णय, साक्षरता दर में गिरावट व अन्य गंभीर समस्याओं का कारण बनेगा इस पर तत्काल रोक लगे।

….. रीना त्रिपाठी
जैसा कि विदित है उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों की पेयरिंग/मर्जिंग /विलय के तानाशाही फैसले के विरोध में प्रदेश के विभिन्न संगठन आंदोलनरत हैं। इसी क्रम में सर्वजन हिताय संरक्षण समिति ने दर्ज कराया विरोध ।
सर्वजन हिताय संरक्षण समिति की महिला प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय अध्यक्ष रीना त्रिपाठी ने कहा कि प्रदेश के लगभग सत्ताइस हजार विद्यालय, एकीकरण होने से प्रभावित हो रहे हैं ।जिसमें लगभग दस लाख बच्चे अध्यनरत हैं। यदि पचास से कम संख्या वाले बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों को करीब के अन्य विद्यालय में मर्ज किया जाएगा तो पहले से पढ़ने वाले उन मासूम बच्चों की शिक्षा पर कुठाराघात होगा।
प्रदेश में गरीब निरीह बच्चो के लिए प्रत्येक गांव में बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालय खुले हैं जो निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा बच्चों को देना सुनिश्चित करते हैं परंतु इस प्रकार गांव के विद्यालय बंद कर देने से इन बच्चों के मूलभूत अधिकार के साथ खिलवाड़ होगा।
गांव व पिछड़े इलाकों की भौगोलिक स्थिति, अभिभावकों की आर्थिक कमजोरी,बच्चों की सामाजिक सुरक्षा, सुलभ सार्वभौमिक और निशुल्क शिक्षा पाने का अधिकार,परिवहन संबंधी विभिन्न परिस्थितियों ऐसी है जिनके आधार पर स्थानीय स्तर पर घर के पास ही बच्चों को शिक्षा देना उचित और सामाजिक रूप से हितकर रहेगा।
उन्होंने कहा कि एक शिक्षक गांव में बच्चों को केवल शिक्षा ही नहीं देता बल्कि उसे कई बार असामान्य परिस्थितियों में उचित सलाह देने, सामाजिक सुरक्षा देने और मार्गदर्शन और प्रेरणा स्रोत का काम करता है। अचानक स्कूल विलय होने से गांवो के विकास पर काफी असर पड़ेगा।
जहां पर गांव वाले थोड़ा भी पढ़े लिखे हैं वह लोग विरोध कर रहे हैं इस प्रकार के विलय का।
प्रदेश में हजारों शिक्षको को बेवजह परेशान किया जा रहा है। कृषि प्रधान देश की सत्तर प्रतिशत आबादी गांव में रहती है जो अपना आर्थिक निर्वाह खेती किसानी या मजदूरी करके करते हैं ।कई बार फसल की कटाई के समय या अन्य महत्वपूर्ण कृषि संबंधी मौसमों में बच्चे भी खेतों में काम करने अपने परिजनों के साथ जाते हैं।
कहीं कहीं तो इतनी गरीबी है कि छोटे भाई बहनों को भी बड़े भाई बहनों के साथ प्राथमिक स्कूल में छोड़कर मां-बाप मजदूरी करने जाते हैं और प्राथमिक स्कूलों के शिक्षकों को उनकी देखभाल में लगना पड़ता है। यदि इस प्रकार कम संख्या के आधार पर स्कूल बंद कर दिए जाएंगे तो उन गरीब मासूम और असहाय बच्चों का क्या होगा जिनके मां-बाप उन्हें प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने के लिए सक्षम नहीं है।
यदि सरकार नहीं चेती और तत्काल प्रभाव से विलय जैसे तानाशाही आदेशों को वापस नहीं लिया तो गांव के बच्चे जिनका कसूर सिर्फ इतना है कि वह प्राइवेट स्कूल में नहीं जा सकते और गरीबी के निचले पायदान में आते हैं, गांव के वंचित और पिछड़े परिवारों से आते हैं, शिक्षा से दूर चले जाएंगे उन्हें कोई प्राइवेट स्कूल फ्री में नहीं पढ़ाएगा और अशिक्षित किसान या मजदूर बनने को मजबूर होंगे। आज अगर नमांकन कम है तो अन्य पहलुओं पर विचार करते हुए समाधान खोजना चाहिए।
आज पूरे प्रदेश के बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालय निपुण लक्ष्य को प्राप्त किए हुए हैं जिसमें ज्यादातर शिक्षक और विद्यार्थी जिन्होंने निपुण लक्ष्य प्राप्त किया है योग्यता की परिपाटी पर खरे उतरे हैं। यानी कि कमी पढ़ाई के स्तर पर नहीं है ।आज कमी इस बात की है कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मिली भगत से प्रत्येक विद्यालय में निजी स्कूल खोल दिए गए हैं और इन प्राइवेट स्कूलों में ढाई वर्ष की उम्र से बच्चे को एडमिशन दिया जाता है।
एक के साथ दूसरे बच्चे की फीस आधी कर दी जाती है और घर के दरवाजे तक यातायात के संसाधन भेज कर उन्हें विद्यालय में बुलाया जाता है। आप ही सोचिए यदि प्रत्येक गांव तथा दूसरे गांव में साधन की सुविधा घर तक भेज कर प्राइमरी स्तर के भी पहले ढाई साल के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में बुला लिया जाएगा तो बेसिक शिक्षा परिषद के नियम के तहत छः वर्ष की आयु के बच्चे बचेंगे ही कहां ?इस प्रकार जब छः वर्ष के आयु के बच्चों की संख्या में कोई छूट नहीं मिलेगी तो यह बच्चे प्राइवेट स्कूल की तरफ आकर्षित होंगे और बच्चों की एक बड़ी संख्या कम होने का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है।
इस तरह हजारों की संख्या में बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूल बंद होने से शिक्षा व्यवस्था चरमरा जाएगी और एक बड़ा प्रश्न इनमें कार्यरत शिक्षकों का अन्य कर्मचारी के भविष्य पर भी पड़ेगा। शिक्षकों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।
एक तरफ ग्रामीण विद्यालय के विलय के कारण से असंतुष्ट होने पर शिक्षक को घेर करधमकी दे रहे है,विद्यालय में नारेबाजी कर रहे हैं तो वहीं नारेबाजी क्यों की गई इसका स्पष्टीकरण भी शिक्षकों से सक्षम अधिकारियों द्वारा मांगा जा रहा है और इस प्रकार शिक्षकों को दोहरी प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है।
शिक्षा का अधिकार, जिसे आरटीई भी कहा जाता है छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का कानूनी अधिकार प्रदान करता है ।
यह अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21A में शामिल मूल अधिकार भी है जो प्रत्येक बच्चे को शिक्षा देना राज्य का संवैधानिक कर्तव्य माना जाता है। आज बहुत ही ज्वलंत प्रश्न उठ रहा है कि इस प्रकार विद्यालयों के विलय से छह वर्ष केछोटे बच्चे क्या प्रतिदिन दो से लेकर छः किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है। धूप ,बरसात और सर्दी के मौसम में क्या उन मासूमों के स्वास्थ्य पर बुरा असर नहीं पड़ेगा मार्ग में चलते वाहनों से कोई बच्चा दुर्घटनाग्रस्त नहीं होगा यह कौन सुनिश्चित करेगा? निश्चित रूप से यह प्रश्न देखने में तो बहुत आसान लगते हैं पर क्या इनका उत्तर कोई जिम्मेदार है अधिकारी या सरकार लेने के लिए आगे आएगी।
प्रदेश के कुछ क्षेत्र जैसे बहराइच,
लखीमपुरखीरी,सीतापुर ,चंदौली,सोनभद्र, बलिया आदि क्षेत्रो में घने जंगल व गन्ने के खेत,धान गेहूं के खेत पाए जाते हैं जिनमें कई जंगली जानवरो से आवागमन के दौरान बच्चों को जान माल का नुकसान हो सकता है। यदि किसी बच्चे के साथ कोई अनहोनी हो जाती है तो अन्य बच्चे भी विद्यालय जाना छोड़ देंगे जिससे आउट ऑफ स्कूल बच्चो की संख्या में काफी वृद्धि होगी।
प्रदेश भर के शिक्षक संगठनों और सर्वजन हिताय संरक्षण समिति का कहना है कि जिम्मेदार अधिकारियों को प्रदेश की वास्तविक भौगोलिक स्थिति का जमीनी स्तर का ज्ञान रखते हुए यूनिसेफ की गाइडलाइन का ध्यान देते हुए और मासूम निर्दोष बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए आदेश पारित करने चाहिए । इस प्रकार हजारों की संख्या में स्कूल के बंद होने से बच्चों का भविष्य और प्रदेश का भविष्य भी अंधकार मय होगा। नित प्रतिदिन नवीन मनगढ़ंत आदेश जारी कर शिक्षकों को कटघरे में खड़ा किया जाता है ,
हर सरकारी असफलता के लिए शिक्षकों को दोषी ठहराना इन्हें आसान लगता है जो की उचित नहीं है शिक्षा विभाग से जुड़े हुए सभी संगठन इसका विरोध कर रहे हैं।इससे शिक्षकों में आक्रोश और असंतोष का भाव जागृत होता है। पूरे प्रदेश के किसानों मजदूरों और असहाय जनता के हृदय में राज्य सरकार की छवि धूमिल करने वाले बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों की मर्जिंग के आदेश को तत्काल प्रभाव से निरस्त करना चाहिए। राज्य सरकार से सभी शिक्षकों सामाजिक संगठनों ,किसान संगठन और कर्मचारी संगठनों का अनुरोध है कि विद्यालयों को बंद करने के इस आदेश को बच्चों ,शिक्षकों प्रदेश की जनता के हित का ध्यान रखते हुए तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया जाए ताकि एक जुलाई से विद्यालयों में पठन-पाठन का कार्य सुचारू रूप से संचालित कराया जा सके।
आज पूरे प्रदेश में अभिभावक विद्यालयों में जाकर शिक्षकों को धमकी दे रहे हैं और विद्यालय बंद होने के लिए उन्हें ही दोषी ठहरा रहे हैं उन मासूम गांव वालों को इस बात का ज्ञान नहीं है कि आदेश शासन की तरफ से आया है उन्हें तो अपने बच्चों का भविष्य दिखाई दे रहा है जो कि इन आदेशों के काले पन्नों में कहीं खोने जा रहा है।
जनहित में और प्रदेश के भविष्य इन नौनिहालों के भविष्य और मुस्कुराहट का ध्यान रखते हुए कृपया तत्काल प्रभाव से बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों की मार्जिन का आदेश वापस लिया जाए।
@रीना त्रिपाठी
महिला प्रकोष्ठ राष्ट्रीय अध्यक्ष सर्वजन हिताय संरक्षण समिति।
9956248676