झारखंड राज्य में इन दिनों 153 दिनों की चंपाई सोरेन की सरकार पर मलाल उठ रहा है- त्रेता युग में जिस तरह से श्री राम के वनवास के समय अयोध्या की गद्दी “भरत” को सौंपी गई थी तथा वनवास उपरांत हर्ष पूर्वक भरत ने राजा के पद को त्याग दिया था; वहीं झारखंड में कलियुगी भरत रूपी चंपई सोरेन का इस्तीफा कुछ ऐसा ही माना जा रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने निर्विवाद रूप से सरकार चलाया, जिनके कुशल नेतृत्व के बूते राज्य के 14 में से पांच लोकसभा सीटों पर “इंडिया” गठबंधन के उम्मीदवारों को जिताकर भाजपा के मंसूबों पर पानी फेर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने हेमंत सोरेन की धर्मपत्नी कल्पना मुर्मू सोरेन को पूरा सम्मान देते हुए गांडेय उपचुनाव जिताकर विधानसभा पहुंचाने का कार्य किया। जिन्होंने अपना पूरा सियासत गुरुजी “झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन” को समर्पित कर दिया।
झारखंड आंदोलन में गुरुजी के साथ साए की तरह चिपके रहे और झामुमो के हर दौर को जिया। जिसने कभी अपने परिवार के किसी सदस्य के लिए पार्टी आलाकमान के आगे हाथ नहीं फैलाया। गुरुजी को अपना आदर्श मानने वाले चंपाई सोरेन ने हेमंत सोरेन के विरासत को न केवल मंझधार से निकाला, बल्कि पूरे शालीनता के साथ कहने पर सत्ता सौप दी।
लोकसभा चुनाव के बाद 28 जून 2024 को झारखंड हाई कोर्ट से हेमंत सोरेन को जमानत मिली। कयास लगाया जा रहा था कि हेमंत सोरेन के बाहर आने के बाद चंपाई सोरेन के हाथों में ही सत्ता की बागडोर रहेगी और हेमंत सोरेन राज्य की जनता से मिल रहे सहानुभूति का लाभ कुछ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में उठाएंगे। अब बातें यह निकल कर आ रही है की; क्या उन्हें अपने ही पार्टी के वरिष्ठ नेता पर भरोसा नही?