डॉ. संजय त्रिपाठी
प्रबंध संपादक
नवयुग समाचार (दैनिक)
इसमें पिंडदान क्यों करते हैं
गया, बिहार में स्थित एक प्राचीन और पवित्र शहर, जिसे ‘मोक्ष की नगरी’ के नाम से भी जाना जाता है। पितृ पक्ष के दौरान यहाँ पिंडदान और श्राद्ध कर्मकांड करने का विशेष महत्व है। गया का नाम एक शक्तिशाली राक्षस गयासुर के नाम पर पड़ा, जिसकी कहानी पुराणों और शास्त्रों में वर्णित है। यह कथा बताती है कि क्यों गया को पितरों के लिए सबसे पवित्र स्थान माना जाता है।
गयासुर का वरदान:- पुराणों के अनुसार, गयासुर एक अत्यंत तपस्वी और धार्मिक प्रवृत्ति का राक्षस था। उसने अपनी कठोर तपस्या से भगवान विष्णु को प्रसन्न कर लिया था। भगवान विष्णु ने प्रकट होकर उससे वरदान मांगने को कहा। गयासुर ने एक ऐसा वरदान माँगा जो अद्वितीय था: “जो कोई भी मेरे शरीर को स्पर्श करेगा, उसे सीधे स्वर्गलोक की प्राप्ति हो जाएगी।” भगवान विष्णु ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर यह वरदान उसे दे दिया।
जब यमलोक हो गया खाली:- इस वरदान के कारण, गयासुर के स्पर्श से सभी प्राणी, चाहे वे पुण्यात्मा हों या पापी, सीधे स्वर्गलोक जाने लगे। यमलोक खाली होने लगा और संसार में पाप और पुण्य का संतुलन बिगड़ने लगा। चिंतित होकर सभी देवी-देवता ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी ने इस समस्या का समाधान करने के लिए गयासुर के पास जाकर उससे यज्ञ के लिए उसकी पवित्र देह का दान माँगा। गयासुर ने बिना किसी संकोच के अपनी देह यज्ञ के लिए दे दी। ब्रह्मा जी ने गयासुर के शरीर पर धर्मशिला रखकर यज्ञ शुरू किया, लेकिन गयासुर का शरीर इतना पवित्र और पुण्यात्मा था कि वह हिलता-डुलता रहा।
गदाधर रूप में प्रकट हुए विष्णु:-
गयासुर के शरीर को स्थिर करने के लिए स्वयं भगवान विष्णु को गदाधर रूप में वहाँ आना पड़ा। उन्होंने अपने दाहिने पैर को गयासुर के शरीर पर रखा, जिससे गयासुर का शरीर स्थिर हो गया। इस दौरान गयासुर ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि जिस स्थान पर उसने अपने प्राण त्यागे हैं, वह स्थान एक शिला में परिवर्तित हो जाए और वह स्वयं उसमें हमेशा मौजूद रहे। गयासुर ने यह भी वरदान माँगा कि उस शिला पर भगवान विष्णु के पवित्र चरण चिन्ह हमेशा रहें और यह तीर्थ उसके नाम से जाना जाए।
ऐसे गयाजी नाम पड़ा
भगवान विष्णु ने गयासुर की इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। गया में मौजूद विष्णु पद मंदिर में आज भी भगवान विष्णु के चरण चिन्ह मौजूद हैं, जिन्हें देखकर श्रद्धालु उन्हें प्रणाम करते हैं। इसी कारण से गया जी को “गदाधर क्षेत्र” भी कहा जाता है। तब से यह नगरी ‘गया’ के नाम से जानी जाती है और यहाँ पितरों के लिए पिंडदान और श्राद्ध कर्मकांड करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ पिंडदान करने से पितरों को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है और पितृ दोष दूर होता है। (पौराणिक कथानुसार)